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चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा (ग़ज़ल 'राज')

२१२२   २१२२   २१२२ 

ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा

क्यूँ समझता ही नहीं सागर ईशारा

 

तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है

अक्स अपना झील में उसने उतारा

 

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा

 

डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना

उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा

 

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

 

लौट आयें फिर वही पुर-कैफ़ मंजर

वक़्त जिनके दरमियाँ हमने गुज़ारा

---------------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) 

पुर-कैफ़ मंजर---सुखद आनंद भरा   नाम 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2014 at 6:12pm

केवल प्रसाद जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 5, 2014 at 9:23pm

आ0 राजेश कुमारी जी, बहुत खूबसूरत गजल के लिए बधाई स्वीकारे।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2014 at 10:07am

प्रिय वंदना,ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मेरा लेखन सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ सस्नेह | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2014 at 10:05am

आ० गणेश बागी जी,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर उत्साहित हूँ आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ  

Comment by vandana on October 5, 2014 at 6:20am

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

वाह आदरणीया राजेश दीदी बहुत बढ़िया ग़ज़ल 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 4, 2014 at 8:53pm

वाह वाह, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सभी शेर पुरकस लगें, बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2014 at 7:52pm

प्रिय छाया शुक्ला जी ,ग़ज़ल के शेर आपके दिल में जगह बना पाए मेरा लिखना सार्थक हुआ बहुत- बहुत दिली शुक्रिया. 

Comment by Chhaya Shukla on October 4, 2014 at 7:27pm

 बेहतरीन गज़ल के लिए दाद कबूल फरमाएं बहन राजेश जी सादर ! 

प्रिय शेर -

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

बधाई ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2014 at 5:39pm

आ० डॉ.विजय शंकर जी इस उत्साहवर्धन की शुक्रगुजार हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हुआ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2014 at 5:39pm

नरेंद्र सिंह जी ,बहुत- बहुत शुक्रिया. 

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