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चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा (ग़ज़ल 'राज')

२१२२   २१२२   २१२२ 

ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा

क्यूँ समझता ही नहीं सागर ईशारा

 

तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है

अक्स अपना झील में उसने उतारा

 

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा

 

डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना

उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा

 

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

 

लौट आयें फिर वही पुर-कैफ़ मंजर

वक़्त जिनके दरमियाँ हमने गुज़ारा

---------------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) 

पुर-कैफ़ मंजर---सुखद आनंद भरा   नाम 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:08am

मिथिलेश जी ,ग़ज़ल पर आपके द्वारा विस्तृत समीक्षा पाकर ग़ज़ल स्वतः मुकम्मल हो गई है मेरा कलम ममनून है आपकी इस जर्रानवाजी का बहुत बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 15, 2014 at 11:49pm

ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा

क्यूँ समझता ही नहीं सागर इशारा .... क्या बात है उम्दा बहुत खूब 

 

तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है

अक्स अपना झील में उसने उतारा ....कमाल है बस क्या खूब कहा है ...तिश्नगी की हद ...

 

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा..... बेहतरीन शेर 

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा .... दिली बधाइयाँ 

 

डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना

उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा ..... बहुत बेहतरीन "डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना"  

 

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा....अच्छा शेर 

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा..... बेहद उम्दा शेर.... डूबते की आस को  बस एक मुस्कान ... बस थोड़ा सा साथ थोड़ी सी हमदर्दी 

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा ... अच्छा शेर 

 

लौट आयें फिर वही पुर-कैफ़ मंजर

वक़्त जिनके दरमियाँ हमने गुज़ारा... बेहतरीन ... आखिरी पर उम्दा 

पुनः नमन .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 8, 2014 at 10:51am

आ० हरिवल्लभ शर्मा जी ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने मेरी लेखनी को नव ऊर्जा तथा संबल दिया तहे दिल से आभार आपका सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 8, 2014 at 10:49am

प्रिय महिमा श्री ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |

Comment by harivallabh sharma on October 7, 2014 at 9:29pm

बहुत ही उत्कृष्ट ग़ज़ल...सभी अशआर जोरदार..आदरणीया rajesh kumari जी.

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा...सुन्दर शेरों सजी ग़ज़ल हेतु बधाई.

Comment by MAHIMA SHREE on October 7, 2014 at 9:25pm

वाह वाह ..पूरी ग़ज़ल ही शानदार है ..हार्दिक बधाई आ. राजेश दी ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2014 at 7:31pm

आ० विजय मिश्र जी,ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया  हेतु हार्दिक आभार सादर |

Comment by विजय मिश्र on October 7, 2014 at 5:51pm
राजेशजी , साधुवाद इस प्यारी सी प्यार को आमंत्रित करती रचना के लिए |पुनः आभार |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2014 at 6:33pm

पवन कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका |

Comment by Pawan Kumar on October 6, 2014 at 6:21pm

"बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,  आदरणीया ... बधाई सादर!"

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