For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पटियाला से ऊना-हरियाली और रास्ता (दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे – यात्रावृतांत-२ )

पटियाला-शांत शहर और दिलवाले लोग (यात्रा वृतांत-१) से आगे …

संगीत-संध्या में धमाल करते-करते और रात्री-भोजन के सुस्वादु व्यंजनों के दौरान भी एक दूसरे की जम कर खिंचाई हुयी और भोजपुरी गाने के बोल पर ठहाके पर ठहाके लगे | आ. बागी जी, आ. सौरभ जी ने कई भोजपुरी-ठुमके वाले गानों की यादें ताजा कीं | मुझे भी Whatsapp पर छाये कई बिहारी जोक्स याद आये जिसे आ. राणा प्रताप जी पूरे मजमून और तफ्सील के साथ पेश  किया | पटियाला में भी छपरा, आरा, बलिया छाये हुए थे | इन सब के दौरान रात के १२ बज चुके थे |

आ. योगराज सर ने आ.सौरभ जी को बताया उनके लिए विशेष तौर पर होटल में कमरे बुक किये हुए हैं, उन्हें वही आराम करना है और सोना है | आ.सौरभ जी ने कहा इतनी शानदार हवा चल रही है, मैं तो यहीं आपके  निवास–स्थान में ही रहूँगा | पर आ. योगराज जी उन्हें कहा, "नहीं..! आप वहीं जाए, आराम करें, कल सुबह ८ बजे उना के लिए बरात निकल पड़ेगी, जल्दी उठना है, आप होटल में ही जाकर आराम से सोयें, तभी नींद भी सही से पूरी होगी | इसी बीच हमारा भी जिक्र हुआ कि कहाँ ठहराया जाए | हमारे लिए घर और होटल दोनों विकल्प रखे गए थे । पर वेदिका २४ ता. से यात्रा कर रही थी तो हमने आराम से पूरी नींद लेने और सुबह जल्दी तैयार होने के लिए होटल में रुकना सही समझा | इस तरह हम पांच लोग आ. योगराज सर द्वारा खास हमारे लिए प्रबंध किये गए जायलो में अपने साजो सामान के साथ होटल के लिए निकल पड़े | और १० मिनट में होटल आशियाना पहुँच गए | रात के करीब १ से  २ के बीच में हमारी आँख लग गयी | सुबह ६ बजे के करीब हम जाग चुके थे और फटाफट तैयार  हो गए | ७ बजे के करीब हमें चाय पीने की इच्छा हुयी | पता चला बाकी लोग चाय पीने पास ही कहीं गए हुए हैं | वेदिका ने आ. सौरभ जी को फोन मिलाया तो वो हमारे लिए तुरंत मठरी साथ में ले के आ गए | पर हमें तो चाय पीनी थी, दुबारा हमने सौरभ जी को परेशान किया और फिर हम तीनों चाय पीने बाहर गए | चाय पीने के दौरान सौरभ जी ने बताया कि पंजाब में लोग खालिश दूध की कम चाय-पत्ती और ढेर सारी चीनी वाली मीठी, कम उबली हुयी चाय पीते हैं | यहाँ कड़क चाय नहीं मिलेगी | और चाय वाले भैया को उन्होंने पहले ही निर्देश दे दिया, चीनी कम डालना और जरा ज्यादा उबालना | इसी बीच मुझे दरवाजे पे कुछ पंजाबी में लिखा हुआ दिखा, मैंने पूछा तो आ. सौरभ जी कहा लिखा है, "७ रूपये की चाय" | साथ में सवाल दाग दिया, "बताओ इसे कौन सी लिपि कहते है ?"  मुझे सिर्फ गुरु ही याद आ रहा था इसलिए मैंने बिना सोचे फटाक से गुरुवाणी बोल दिया, तो उन्होंने बताया 50% पास हुयी हो, इसे गुरुमुखी लिपि कहते हैं |

सुबह के ८ बज चुके थे | बारात में शामिल होने के लिए जायलो होटल के बाहर आकर खडी हो चुकी थी | हम अपने बारात में पहने जाने वाले कपड़ो के साथ सवार हो गए | उधर पूरी बारात योगराज सर के निवास–स्थान से भी निकल चुकी थी | सौरभ जी और बागी जी उनसे फोन पर संपर्क बनाये हुए थे |

बारात पटियाला से उना जा रही थी | १५६ किलोमीटर की दुरी हमें तय करनी थी, जो २:३० से ३ घंटे में पूरी होनी थी | हमारा सफ़र शुरू हो चुका था | आ. सौरभ जी ड्राईवर भइया से परिचय ले रहे थे | उसने अपने दो नाम बताये । पर मुझे उनका प्यार से पुकारे जानेवाला  नाम याद रह गया  है, “ लवली  सिंह “ । उन्होंने गाडी में पंजाबी गाने चला रखे थे | हम भी उसका आनंद उठा रहे थे | पंजाब का अपना ही सौन्दर्य है, लहलहाते खेत, खुबसूरत बाँध और शांत प्रसन्नचित जन समुदाय | इतना शांत शहर मैंने कभी नहीं देखा था | जैसा मैंने पटियाला को महसूस किया | किसी को कोई जल्दी नहीं, चेहरे पर कोई तनाव नहीं | महानगर में रहनेवाले और तनावयुक्त जीवन जीने वाले हम जैसे लोगों के लिए आश्चर्यजनक बात थी | हम अभी पंजाब में थे और हरियाली के बीच हर २ से ३ किलोमीटर पर सफ़ेद खुबसूरत वास्तुकारी से निर्मित गुरुद्वारा दिख जाता | और साथ में स्वच्छ क़लकल बहता आँखों को सुकून देता बहता बाधों का पानी | दो तरफ़ा रास्ते  के बीच भी चंपा, चमेली, गुलाब, गुड़हल और न जाने कितने खुबसूरत पौधे लगे थे, जो रास्ते को और भी रमणीय बना  रहे थे | जिनके नाम  आ. सौरभ जी बताते जा रहे थे तो कभी बागी जी | खेतों में धान लगा हुआ था जिनमे बालियाँ आ चुकी थी | आ. राणा जी की तबियत खराब थी जैसा कि उन्होंने बताया तो वो चुप से थे, पर हम चारों पूरी मस्ती कर रहे थे | हाँ, एक बार राणा जी ने लवली जी से डिमांड किया कि गुरुदास मान के गाने चलाओ | लवली  जी ने किस पंजाबी गायक के गाने चला रखे थे पता नहीं, पर धुन तो बस थिरकने  वाली थी | एक बात मैंने नोटिस की पंजाब में कहीं भी हनुमान जी का मंदिर नहीं था | सिर्फ गुरूद्वारे थे | इस बात को मैंने कहा भी | हमारे यहाँ तो हनुमान जी को ट्रैफिक पुलिस बना के रखा हुआ है, या फिर जमीन हथियानेवाला दादा बना रखा है | दूसरे शहरों में हर मोड़ पर हनुमान जी दिख जायेंगे या फिर कोई मज़ार | और इन्हें किस लिए खड़ा किया जाता है आप सबको खूब पता है |

हम पटियाला से आगे निकल कर सरहिंद पहुँच गए थे | वहाँ से हमें रूपनगर फिर आनंदपुर साहिब फिर नंगल और तब उना पहुँचना था | ऐसा हमें लवली जी ने बताया कि आनंदपुर साहिब आ गया | आनंदपुर का नाम सुनते ही आ. सौरभ जी ने कहा गुरुद्वारा मुझे देखना है | इंदिरा गाँधी और भिंडरवाला के बीच इसी गुरुद्वारे में राजनैतिक समझौता हुआ था | इस गुरुद्वारे का धर्मिक महत्व के साथ राजनैतिक महत्त्व भी है | उनका उतावलापन और किसी बच्चे जैसी उत्सुकता देख कर लवली सिंह ने सलाह दी, "सर जी, रात को लौटते वक्त देख लेना अभी बहुत देर हो जायेगी, बारात में समय पर पहुँचना है | और ये तो २४ घंटे खुला रहता है, कोई परेशानी  नहीं है |"

इस तरह रात को वापस लौटने के दौरान आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा दर्शन का कार्यक्रम तय हो गया | रास्ते में हमें गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब मिला था | सबका विचार हुआ यहाँ चल कर माथा टेक के आना चाहिए | इसका कारण था गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का हृदय दहला देनेवाला इतिहास | सरहिंद ऐतिहासिक और धार्मिंक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है | आ. सौरभ जी ने बताया यहीं मुगलों ने गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनों पुत्रों को, जिनमें एक सात साल तथा दूसरे ९ साल के थे,  जिन्दा दीवार में चुनवा के उनके सर को खास तरह चक्र से क्षत-विक्षत कर दिया गया था | उनका शहीदी दिवस आज भी यहाँ लोग पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं | सुन कर मन बहुत दुखी हो गया | अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए सिक्खों ने कितना बलिदान दिया है ! पंजाब आकर फिर से सब भान होने लगा | अपना देश हमेशा इनका ऋणी रहेगा | मैं वीरों की धरती के प्रति नतमस्तक थी | हमने अंदर जाकर अपनी मौन श्रद्धांजली दी और वापस आ गए |

 

हम ८ बजे के निकले हुए थे बारात वाली बस अभी हमें मिली नहीं थी | किसी ढाबे पर एक साथ होने की बात हुयी थी पर शायद हम लेट हो गए थे और दोपहर के १ बजने वाले थे | एक ढाबा देख कर गाड़ी रोकी गयी | हमने वहाँ प्याज के पराठे, सब्जी, दही खायी और चाय पी | चाय कच्ची थी जिसे सौरभ जी नहीं पी पाए और अपनी चाय बागी जी के ग्लास में उड़ेल दिया | आ. बागी जी ने चुटकी ली, "लगता है भेड़ के दूध की चाय बनाके लाया है | वैसा ही स्वाद आ रहा है |" हम सब हँसने लगे | राणा जी का मौन अभी तक के सफ़र में जारी था, पर बागी जी की लघुकथा जैसी चुटकियाँ व हाजिरजवाबी गुदगुदा जाती तो सौरभ जी का चीजों के प्रति बच्चों जैसी उत्सुकता और चेहरे पर प्रसन्नता हम सभी में भी उत्साह दुगना कर जाती | हम बात करते रहे रास्तो के बारे में, सतलुज और भाखड़ा-नगंल बांधो के बारे में | लवली जी हमारे लिए ड्राईवर के साथ–साथ गाइड भी बने हुए थे | इस बीच बारात वाली बस मिल गयी जिसमें दुल्हे बने ऋषि प्रभाकर जी के साथ पूरी बारात साथ थी | आनंदपुर साहिब पहुँचने के पहले रास्ते में भव्य गेट दिखा, जो गुरुद्वारा के वास्तु के आधार पर ही सफ़ेद पत्थरों से निर्मित था | इतना खुबसूरत था की बस मैं देखते रह गयी | अपने मोबाइल से कोई फोटो भी नहीं ले पायी | हम नंगल में प्रवेश कर चुके थे हमारी गाडी सतलज नदी पे बने बाँध के पास से गुजर रही थी, बहुत ही मनोरम दृश्य था जिसे मैं सिर्फ अपने आँखों में भर लेना चाह रही थी |

हम उना पहुच गए थे | पंजाब पीछे छूट गया था | अब हम हिमाचल में थे | वातावरण बदल रहा था, हरियाली कम हो रही थी | हम ऊँचाई की ओर बढ़ रहे थे, रास्ते अब चिकने और चौड़े होने के बजाये थोड़े संकरे और पथरीले होने लगे थे और कई मोड़ आने लगे थे | रास्ते में मुझे एक पत्थर पर कुछ लिखा मिला जिसे मैंने जोर से पढ़ा | ये सुन कर सौरभ जी हँस पड़े, कहा, "ये किसी के घर की ओर जाने का संकेत है | साथ में बताने लगे कि हिमाचल के कई सारस्वत बाह्मण दक्षिण भारत में  ६००-७०० साल पहले जाकर बस गए हैं | इसलिए वहाँ ये लोग उनके बीच बहुत ही सुंदर और गोरे-गोरे दीखते हैं, जो यहाँ हिमाचल में भी उतने गोरे नहीं हैं |

बारात वाली बस हमें रुकी दिखाई दी और सारे बाराती भी बस से बाहर आ चुके थे | हमारी भी गाडी रुक गयी, पता चला हम दुल्हन के गाँव ओयल आ गए थे | पास में सजी–धजी घोड़ी खड़ी थी | रस्में चल रही थी | बच्चियाँ जिन्होंने हमें खूब प्यार दिया था और संगीत में जम कर डांस किया और करवाया था, हमें देखते ही सब दौड़ कर आईं और गले मिलीं | उनकी निश्छलता और उनका प्यार मन को कहीं छू गया | पास में वधु का घर था और जयमाला के लिए लगाया का विशाल पंडाल, जहाँ कुर्सियां लगी थीं | खाने-पीने का पूरा इंतजाम | हम थिरकते–ठुमकते वहाँ पहुँच गए | खूब स्वागत–सत्कार हुआ |

पूर्वी राज्यों में जिस प्रकार शादियों में अहमकाना हरकते होती हैं, वैसा कुछ नहीं था | न इधर लड़केवाले ऐंठ रहे थे और न ही लड़की वाले परेशान हो रहे थे कि पता नहीं लड़के वाले क्या डिमांड कर दें और कैसे उसकी पूर्ति होगी | दोनों परिवारों के बीच बहुत ही सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बना हुआ था जिसे देख मुझे इतना सुकून मिल रहा था की क्या बताऊँ |

हमें कपडे बदलने थे तो बच्चियों हमें वधु के घर ले के गयी | वहाँ हम तैयार हुए पर हमसे गलती ये हो गयी कि बिना किसी को बताये और पूछे चले गए थे | इस बीच जब हम आये तो जयमाला की रस्म हो चुकी थी | सभी लोग खाना खा रहे थे | फिर पता चला खाना खा कर हमें भी लौट जाना है | रात में रुक कर शादी नहीं देखनी | हमारा चेहरा देखने लायक था | जब हम आये तो हमने खाया | सामान लाने गए | प्यारी सी वधु से कमरे में मिले | वो बहुत सुंदर लग रही थी | हँसने पर गालों पर डिम्पल पड़ रहे थे | आ. प्रभाकर सर जी की बेटी ऋतु ने हमारा उनसे परिचय करवाया | बड़े प्यार और सहजता से मिलीं | हमने बधाई दी और दूसरे कमरे में आ गए जहाँ हमने अपने कपडे रखे थे |  मैंने शादी वाले कपडे बदलकर रास्ते के लिए हलके कपडे वापस पहन लिए | हमसे बेवकूफी हो चुकी थी | जयमाला देख नहीं पाए थे, मन में मलाल रह गया था |

क्रमशः

Views: 3399

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 2, 2014 at 7:24pm

अरे वाह ! हम तो विशद-रपट नहीं बल्कि पटियाला-प्रवास का मिनट पढ़ रहे हैं. अपने बीच हुए कॉमा-फुलस्टॉप, डैश-कॉलोन तक को आपने संजोया है.. ग़ज़ब !   
जीये हुए क्षण फिर से मानों आकार पा रहे हैं.  बहुत बढिया रपट है, छुटकी.. ढेर-ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकारो .. .
:-))


//इंदिरा गाँधी और भिंडरवाला के बीच इसी गुरुद्वारे में राजनैतिक समझोता हुआ था| इस गुरुद्वारे का धर्मिक महत्व के साथ राजनैतिक महत्त्व भी है //

श्रीमती इन्दिरा गाँधी और भिंडरावाले के बीच कोई खुला राजनैतिक समझौता नहीं हुआ था. (अलबत्ता बताते हैं कि जो हुआ था वो छुपा हुआ समझौता था जो आपसी ही था, जिसके बाद पंजाब वो पंजाब न रहा, जिसके लिए वो जाना जाता था, बल्कि वर्षों जूझता रहा).
मैंने वस्तुतः 1985 के राजीव गाँधी-संत लोंगोवाल के बीच के समझौते की चर्चा की थी.
आनन्दपुर साहब में ही गुरु गोविन्द सिंहजी ने खालसा पंथ की थी तथा आपने पंजप्यारों का चयन किया था. गुरु महाराज ने अपने जीवन का बहुत बड़ा काल यहीं व्यतीत किया था. हमने गुरु गोविन्द सिंह साहब के शस्त्र यहीं देखे थे.

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 2, 2014 at 3:58pm
आपका आँखों देखा एवं स्वयं जिया विवाह वृत्तांत भाग-२ भी पढ़ा , बहुत अच्छा है . आपके वृत्तांत लेखन से भी परिचय हुआ , वह भी अच्छा लगा . आप द्वारा लगाये
चित्र भी देखे , सुन्दर हैं और बोल रहें हैं कि विवाह यात्रा बहुत ही अच्छी और रोचक थी ,अब एक सुखद स्मृति हैं .
कुल मिला कर एक बहुत अच्छी बधाई बनती है, आदरणीय महिमा जी , इस सुन्दर सजीव लेखन के लिए .
Comment by Satyanarayan Singh on October 2, 2014 at 1:38pm

यात्रा वृतांत की  दूसरी कड़ी जिसकी  भाषा प्रांजल और सहज है जिसे पढ़ सचमुच आनंद की अनुभूति हो रही हैं, इस यात्रा वृत्तान्त में पंजाब के प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ साथ उसके ऐतिहासिक व राजनैतिक महत्व को भी बखूबी आँका गया  है. यात्रा के दौरान आ. बागी जी के चुटकुले एवं परम आ. सौरभ जी की ज्ञान वर्धक चर्चा तथा उनकी सहजगुण ग्राहकता का परिचय ...वाह ...पढने में ही इतना अच्छा लगा…. तो सच में वहां उत्सव का नज़ारा कितना खूबसूरत होगा….. बहुत अच्छा लगा जो आपने इतना सुन्दर यात्रा संस्मरण हम सबसे साझा  किया……… हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Neeraj Neer on October 2, 2014 at 9:59am

बहुत  ही सुंदर यात्रा वृतांत प्रस्तुत किया , ऐसा प्रतीत हुआ मानो हम स्वयं वहाँ उस यात्रा मे उपस्थित हों और यात्रा का आनंद ले रहे हों। आदरणीय योगराज जी को हार्दिक बधाई  एवं शुभकामनायें ॥ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आ. भाई सुशील जी सादर अभिवादन। दोहों के लिए हार्दिक बधाई।  भाई योगराज जी के कथन को अन्यथा न ले…"
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहो पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। आपके सुझाव से मूल दोहे…"
46 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।  इंगित दोहे में…"
48 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"प्रिय गिरिराज  हार्दिक बधाई  इस प्रस्तुति के लिए|| सुलह तो जंग से भी पुर ख़तर है सड़ा है…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"हार्दिक बधाई लक्ष्मण भाई इस प्रस्तुति के लिए|| सदा प्रगति शान्ति का       …"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , विषय के अनुरूप बढ़िया दोहे रचे हैं , बधाई आपको मात्रिकता सही होने के बाद…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ग़ज़ल  *****  इशारा भी  किसी को कारगर है  किसी से गुफ्तगू भी  बे असर…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service