For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर जलाना भी हमारा व्यर्थ अब - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    212
**
मयकदे को अब शिवाले बिक गये
रहजनों  के  हाथ  ताले बिक गये
**
घर  जलाना भी  हमारा व्यर्थ अब
रात  के  हाथों  उजाले  बिक  गये
**
जो खबर थी अनछपी ही रह गयी
चुटकले  बनकर मशाले बिक गये
**
न्याय फिर बैसाखियों पर आ गया
जांच  के  जब  यार आले बिक गये
**
दुश्मनों की अब जरूरत क्या रही
दोस्ती के फिर से पाले बिक गये
**
सोचते  थे नींव जिनको गाँव की
वो शहर में बनके माले बिक गये

**


मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 564

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:13am

आ० वेदिका जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक बधाई .आपने सही फ़रमाया कि जरूरत मीडिया के रवैये पैट भी चोट करने कि जरूरत है . प्रयास करूंगा कि इस पर कोई सार्थक ग़ज़ल पेस हो और आपकी उम्मीदों पर लेखनी खरी उतरे .शुभ शुभ ....

Comment by वेदिका on August 11, 2014 at 12:04pm
बहुत बेहतरीन गजल की पेशकश हुयी है। न्याय व्यवस्था पर करीने से चोट की है तो मिडिया के बिकाऊपन भी जोरदार तंज है।
इन्ही संदर्भ में अब गजल की जरूरत है। दिली बधाई लीजिये
सादर!!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:10am


आदरणीय भाई गिरिराज जी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:10am


आदरणीय भाई सौरभ जी, उत्साह वर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद स्नेह बनाए रखें । शुभ  शुभ.....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:10am

भाई रामअवध जी गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:10am


आदरणीय भाई जितेंद्र जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:09am


आदरणीय भाई नरेंद्र सिह जी, गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:09am


आदरणीय भाई आशुतोष जी, आपको गजल की गेयता पसंद आयी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2014 at 11:09am

आदरणीय भाई गोपालनारायन जी ,गजल का अनुमोदन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2014 at 9:21am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आदरणीय लक्ष्मण भाई , आपको दिली बधाइयाँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
2 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service