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ग़ज़ल - मन को छूती नहीं हवायें अब ( गिरिराज भंडारी )

2122       1212    22

ज़िन्दगी यूँ लगी भली, फिर भी  

बात खुशियों की है चली, फिर भी 

 

देखिये सच कहाँ पहुँचता है

यूँ है चरचा गली गली, फिर भी 

 

क्या करूँ हक़ में कुछ नहीं मेरे

रूह तक तो मेरी जली, फिर भी 

 

क्यों अँधेरा घिरा सा लगता है  

साँझ अब तक नहीं ढली फिर भी 

 

आप दहशत को और कुछ कह लें

डर गई हर कली कली फिर भी 

 

अश्क रुक तो गये हैं आखों के

दिल में बाक़ी है बेकली फिर भी

 

बात तासीर तक नहीं पहुँची

यूँ थी मिश्री की वो डली फिर भी  

 

पत्तियों से गई उदासी क्या ?

थी हवाओं में खलबली फिर भी  

 

मन को छूती नहीं हवायें अब

यूँ हवा है तो मनचली , फिर भी

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 687

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 7, 2014 at 6:33pm

आदरणीय सौरभ भाई , जो कुछ भी अच्छा कह पा  रहा हूँ सब आप लोगों की सीख का नतीजा है , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । अगर कोई मिसरा सुधारने के लायक है तो ज़रूर सुधार सुझाइयेगा , ये आपका अधिकार है ॥ आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 7, 2014 at 6:29pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2014 at 12:26pm

का महराज ! एकदम पगलवाइये दीजियेगा का !??  .. आजकल आप ग़ज़ल लिख रहे हैं कि कमाल करने पर उतारू हैं !!..

हा हा हा हा............

 

 

आदरणीय गिरिराजजी,

आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल पर दिल से बधाइयाँ. हाँ एक-दो मिसरे तनिक और समय मांग रहे हैं, यह अवश्य है.. फिर भी.. :-)))

कमाल कमाल कमाल ..

Comment by vijay nikore on May 29, 2014 at 6:04am

एक के बाद एक और शानदार गज़ल लिख रहे हैं ... आपको हार्दिक बधाई, भाई गिरिराज जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 28, 2014 at 5:50pm

आदरनीय मुकेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 28, 2014 at 2:53pm

 waaah waaah


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 27, 2014 at 8:56pm

आदरणीया कुंती जी , आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 27, 2014 at 8:55pm

आदरणीय शकील भाई , आपको ग़ज़ल पसंद आयी तो गज़ल कहना सफल हुआ , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 27, 2014 at 8:54pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपकी सराहना ने मेरी कोशिशों को सफल कर दिया , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 27, 2014 at 8:52pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

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