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ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Sarita Bhatia on May 31, 2014 at 10:50am

आप लाजवाब लिखती हैं संजू जी आपकी गजल मैं कभी miss नहीं करना चाहती 

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:49pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:47pm

"'ये और बात थी कि वो भी बेकरार लगी --यह तो कोई पुरुष लिख सकता है i आपके जेहन में यह ख्याल कैसे आया"'////

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी शायद आपने ध्यान नहीं दिया कि प्रस्तुत ग़ज़ल में रदीफ़ "'लगी "'है ,जिसे किसी भी सूरत में बदला नहीं जा सकता । इसी आधार पर रदीफ़ "'लगी " को लिंगानुसार  भी "'लगा "'नहीं किया जा सकता। यह तो हुई इस ग़ज़ल से संबन्धित बात ..जरूरी बात यह कि ग़ज़ल लिखने के लिए हमें किसी की भी तरह सोचना पड़ सकता है ..स्त्री, पुरुष, पशु ,पक्षी  वगैरह वगैरह...इसीलिए   मेरे  जेहन में ये खयाल आया । बहरहाल आपका बहुत बहुत शुक्रिया .

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:31pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:31pm

आदरणीय Sushil Sarna जी आपको ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ ।

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:29pm

आदरनिया coontee जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:28pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:27pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय  narendrasinh chauhan जी

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:26pm

शिज्जू जी अभी तो बस कोशिस जारी है,फिलहाल आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।  

Comment by sanju shabdita on May 30, 2014 at 7:24pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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