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मजदूर [कुण्डलिया]

मजदूरी कर पालता अपना वो परिवार
रोज दिहाड़ी वो करे देखे ना दिन वार |
देखे ना दिन वार नहीं देखे बीमारी
कैसे पाले पेट वार है इक इक भारी
मंहगाई अपार ,यही उसकी मज़बूरी
गेंहू चावल दाल मिले जो हो मजदूरी ||

उसका जीवन है बना दर्द भूख औ प्यास
मजदूरी किस्मत बनी जब तक तन में श्वास |
जब तक तन में श्वास पड़ेगा उसको सहना
तसला धूल कुदाल पसीना उसका गहना
सरिता पूछे आज कहो कसूर है किसका
भूखा है मजदूर पेट भरे कौन उसका ||

.....................................................

,,,,,,,,,,,मौलिक व अप्रकाशित.,,,,,,,,,,,,,,

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2014 at 2:45pm

उसका जीवन है बना दर्द भूख औ प्यास
मजदूरी किस्मत बनी जब तक तन में श्वास |
आदरणीया सरिता जी काश ये दुःख भरे लमहे हमारे समाज और सरकार को नजर आये ...एक यथार्थ परक रचना सुन्दर
भ्रमर ५

Comment by Sarita Bhatia on May 26, 2014 at 1:53pm

आदरणीय सौरभ सर हार्दिक आभार 

स्नेहाशीष बनाये रखें 

Comment by Sarita Bhatia on May 26, 2014 at 1:52pm

आदरणीय गिरिराज सर हार्दिक आभार आदरणीय गोपाल जी का सुझाव नोट कर लिया 

Comment by Sarita Bhatia on May 26, 2014 at 1:51pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई कुण्डलिया पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 11:53pm

अच्छा प्रयास है आदरणीया..  सुझाव समचीन हैं

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 9:39pm

आदरणीया बहुत सुन्दर कुंडलिया रचना हुई है , बधाइयाँ । प्रवाह कहीं बाधित ज़रूर है , आ. गोपाल जी की बातों को मान दीजियेगा ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 22, 2014 at 9:51am

सही कहा आपने आदरणीया सरिता जी, मजदूर कैसे अपने परिश्रम से अपने परिवार को पालता है. बहुत बढ़िया रचना बधाई आपको

Comment by Sarita Bhatia on May 22, 2014 at 9:12am

आदरणीय गुरूदेव हार्दिक आभार स्नेहाशीष बनाये रखें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:26am

आदरणीय दोनों ही कुंडलिया छन्द शानदार हैं. आदरणीय गोपाल नारायण जी के कहे पर गौर कीजियेगा.बधाई..........

Comment by Sarita Bhatia on May 21, 2014 at 10:14am

शुक्रिया शिज्जू भाई 

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