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मन की उपलब्धियों की ढेरी

बेकार अख़बारों की ढेरी जैसा

खाली दूध की थैली व बोतल -सा

मन की उपलब्धियों का -

माल बिक सकता है ?

कोई कबाड़ी वाला आएगा।

ये सब ले जाएगा,

पूरा-का-पूरा कबाड़ उठ जाएगा

सच्ची सजावट सुथरी हो कर निखरेगी

हर चीज यथावत रखी हुई चमकेगी ।

मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में

टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-

मुरझाया हुआ विश्वास,

फटे-पुराने जूतों सा-

बदरंग स्वाभिमान ,

टूटी -फूटी काँच की बोतल जैसे

टूटे बिखरे सपने,

पीतल के पिचके बटुए सरीखा

बेचारा अर्ध सत्य- 

जीवन बन गया रद्दी का अंबार,

निश्चित ही रद्दी वाला  आएगा

सारा सामान अपनी बोरी में

बटोर कर ले जाएगा 

डालेगा जाकर इक बड़े से कारखाने में -

जहां फिर से उपलब्धियां का सामान -

नया रूप ,नया रंग

लेकर ही निकलेगा ।

क्या कभी कोई ऐसा रद्दी वाला आएगा ?

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना मिश्रा बाजपेई

Views: 672

Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on May 20, 2014 at 11:14am

आ० पाण्डेय सर आप मेरा सत बार नमन /सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2014 at 3:39am

आपकी संवेदना को नमन.. .

सादर

Comment by kalpna mishra bajpai on May 6, 2014 at 6:44pm

हार्दिक आभार,मुकेश सर/ सादर

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 6, 2014 at 5:42pm

आदरणीया कल्पना जी
एक वैचारिक मन मे उमड़ते हुए ख़यालात और भविष्य के प्रति सजगता.. सुंदर बहुत सुंदर.
ये पंक्तियाँ मन पर गहरी छाप अंकित करती हैं.

मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में

टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-

मुरझाया हुआ विश्वास,

फटे-पुराने जूतों सा-

बदरंग स्वाभिमान ,

टूटी -फूटी काँच की बोतल जैसे

टूटे बिखरे सपने,

पीतल के पिचके बटुए सरीखा

बेचारा अर्ध सत्य-

जीवन बन गया रद्दी का अंबार,

मुबारकबाद इस खूबसूरत रचना के लिए

Comment by kalpna mishra bajpai on May 6, 2014 at 3:03pm

आ0 annapurna bajpai जी हार्दिक आभार

Comment by kalpna mishra bajpai on May 6, 2014 at 3:02pm

आ0 JAWAHAR LAL SINGH सर आप की उम्मीद पर मुझे भी उम्मीद है , बहुत आभार

Comment by annapurna bajpai on May 6, 2014 at 11:59am

क्या कोई फेरि वाला आयेगा ...................... बहुत खूब , सुंदर भाव से सजी कल्पना ,  कल्पना जी की रचना बहुत बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 11:39am

निश्चित ही रद्दी वाला  आएगा

सारा सामान अपनी बोरी में

बटोर कर ले जाएगा 

डालेगा जाकर इक बड़े से कारखाने में -

जहां फिर से उपलब्धियां का सामान -

नया रूप ,नया रंग

लेकर ही निकलेगा ।

क्या कभी कोई एसा फेरी वाला आएगा ?

निश्चित ही आएगा ...उम्मीद पर दुनिया कायम है ...

Comment by kalpna mishra bajpai on May 5, 2014 at 1:55pm

आ० अरुण कुमार निगम सर हार्दिक आभार । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2014 at 9:16pm

पीतल के पिचके बटुए सरीखा

बेचारा अर्ध सत्य-

जीवन बन गया रद्दी का अंबार...............अतिसुन्दर............

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