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'अल्प विराम-पूर्ण विराम' अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

अल्प विराम – पूर्ण विराम  

********************

वो मै होऊँ या आप

छोटा मोटा विद्यार्थी

सबके अंदर जीता है ,

आवश्यक रूप से

और वो जानता भी है ,

जीते रहने की अहमियत

जीना भी चाहता है

पूर्णता तक,

या मौत तक ।

सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता

सब अल्प विराम ही होते हैं

क्योंकि ,

पूर्ण ज्ञान तो होता है

केवल ईश्वर में

या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।

वही भेजता है , देता है , लगाता है

पूर्ण हो जाने पर ,

पूर्ण विराम ।

एक बार , बस एक बार ,

बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं ।

 

चंद अल्प विरामों को जोड़ कर

ज़िन्दा विद्यार्थी की गर्दन मरोड़ कर

बलात लगाये गये पूर्ण विराम

भ्रम तो देते हैं , वो भी

खुद को अधिक , दूसरों को कम

पूर्ण विराम का ,

मगर होते नही ॥

मर रहे विद्यार्थी को जीने दें भाई ॥

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित   

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:29pm

आदरणीय अरुण भाई , आपकी सराहना और भाव के अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:28pm

आदरणीय सौरभ भाई , रचना आप तक पहुँची इसी से आत्मिक संतोष हुआ , अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Arun Sri on April 3, 2014 at 11:43am

बहुत गहरी और संदेशपरक कविता हुई है ! ज्ञानी होने के अहंकार में मृत्यु ही तो होती है किसी प्रशिक्षु की ! सुन्दर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:30am

प्रस्तुत कविता की अंतर्दशा स्पष्ट है. आपकी भावनाओं को यों शब्दबद्ध होते देखना भला लगा.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 28, 2014 at 5:55pm

आदरणीय आशुतोष भाई , रचना की सराहना और अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 28, 2014 at 5:35pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..एक नूतन चिंतन को समाहित किये हुए दार्शनिक रचना ..साथ में जीवन का अद्भुत सन्देश ..वाकई 

र्ण ज्ञान तो होता है

केवल ईश्वर में

या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।

वही भेजता है , देता है , लगाता है

पूर्ण हो जाने पर ,

पूर्ण विराम ।

एक बार , बस एक बार ,

बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं  इन पंक्तियों के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 28, 2014 at 5:15pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना को आपकी सहमति मिली , बहुत खुशी हुई , आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2014 at 4:13pm

सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई श्री गिरिराज भंडारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 27, 2014 at 3:49pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , अरचना को आपका अनुमोदन मिला तो लिख्ना सार्थक हुआ , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 27, 2014 at 2:06pm

आदरणीय गिरिराज सर अल्प विराम एवं पूर्ण विराम को बहुत ही सुन्दरता से लिखा है आपने सत्य कहा आपने सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता पूर्ण ज्ञान तो केवल ईश्वर में होता है. इसी तथ्य को जो मनुष्य समझ जाए उसका जीवन सफल हो जाए, बहुत ही गहन भाव सार्थक संदेशात्मक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

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