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'तोड़ कर तट बंध सभी' ( अन्नपूर्णा बाजपेई )

उत्तुंग शृंखलाओ को

चीर कर

रफ्ता रफ्ता

उतरती चली आती है

सदा ही अवनत

मचलती लहराती वो

करती धरा का आलिंगन

सहर्ष ..... वलयित हो

मुसकाती

बढ़ती जाती निरंतर

सागर की बाँहों मे

समा जाने को विकल

अद्भुत निरखता सौम्य रूप

कुछ उच्छृंखल

राह के अवरोध समेट

तरण तारिणी

सागर से मिलन की

मधुर बेला मे

पूर्ण समर्पण लखता

अहा ! क्या ही अद्भुत

विहंगम दृश्य.......

धारा का जलध से संगम

कामिनी सी चली

वो राग द्वेष से परे

तोड़ कर तट बंध सभी ..................................

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

 

 

 

Views: 651

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2014 at 8:48pm

आदरणीय अन्नपूर्णा जी , सरिता के स्वरुप की प्रस्तुति एक भावपूर्ण रचना के रूप  में करने के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 8:13pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Neeraj Neer on March 23, 2014 at 5:23pm

बहुत सुन्दर चित्रण ..बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 23, 2014 at 4:50pm

बहुत खूबसूरत वाह बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2014 at 4:05pm

अति सुन्दर चित्रण काव्य द्वारा 

सादर बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
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