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सात दोहे – '' रिश्ते ''

*******    ******

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात

 

रिश्तों  को  भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल

बिना  तेल  देखे बहुत , झटके खाते मेल                            

 

तेरा  घोड़ा  तेज़  है , माना  मेरा  सुस्त

देखो  रिश्ता  हो  गया , पहले जैसे चुस्त

 

तू  माने  खुद को बड़ा , तो मैं भी हूँ शेर

बढ़ने  में  अब  दूरियाँ , नहीं लगेगी  देर

 

आपस की  कमियाँ भरें , यारी की  ये रीत

यही बढ़ाती  है  सदा , हर  नाते  में प्रीत

 

हाथ मिला के कब हुआ, मन से मन का मेल

ये भावों की बात है , ये अन्दर का खेल

 

मैं जैसा भी हूँ अभी , जो कर ले स्वीकार

उसकी सारी ग़लतियों, से मुझको भी प्यार   

***********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2014 at 6:27pm

आदरणीय बृजेश भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2014 at 6:26pm

आदरणीय ब्रह्मचारी भाई जी , दोहों का मान बढ़ाने के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2014 at 12:26pm

रश्ते सहज बनाने के सीख देते सुन्दर दोहे रचे है | हार्दिक बधाई श्री गिरिराज भंडारी जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 28, 2014 at 10:56pm

जीवन को सुंदर सकारात्मक सन्देश देते हुए आपकी दोहावली पर, हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी

Comment by बृजेश नीरज on February 28, 2014 at 10:48pm

सुन्दर दोहे! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by S. C. Brahmachari on February 28, 2014 at 10:19pm
भाई गिरिराज भण्डारी जी,
आपके रचित दोहे मुझे अच्छे लगे । दोहो मे जिंदगी को सहज , सरल तथा स्वीकार्य बनाने के मंत्र छुपे हैं - बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 27, 2014 at 10:35am

आदरणीया वन्दना जी , दोहों पर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 27, 2014 at 10:34am

आदरणीय हेमंत भाई , दोहों की सराहना कर उत्साह वर्धन करने किये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Vindu Babu on February 26, 2014 at 12:34am

नैतिकता को केंद्र में रखकर दोहों के माध्यम से सुंदर अभिव्यक्ति की है आदरणीय।

सादर बधाई आपको

Comment by hemant sharma on February 25, 2014 at 11:52pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपने इन दोहों के माध्यम से रिश्तों की सच्चाई वयां कर दी, बधाई आपको

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात       ......... क्या बात है आपने रिश्तों के मनोविग्यान को बखूबी व्यक्त किया है  

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