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क्या तुम्हें उपहार दूँ : एक गीत (नीरज कुमार नीर)

क्या तुम्हें उपहार दूँ,

प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.

 

तुम वसंत हो, अनुगामी

जिसका पर्णपात नहीं.

सुमन सुगंध सी संगिनी,

राग द्वेष की बात नहीं.

 

शब्द अपूर्ण वर्णन को

ईश्वर के वरदान का.

 

विकट ताप में अम्बुद री,

प्रशांत शीतल छांव सी,

तप्त मरू में दिख जाए,

हरियाली इक गाँव की.

 

कहो कैसे बखान करूँ

पूर्ण हुए अरमान का.

 

मैं पतंग तुम डोर प्रिय,

तुम बिन गगन अछूता है.

तुमसे बंधकर  जीवन

व्योम उत्कर्ष छूता है.

 

तुम ही कथाकार हो, इस

जीवन के आख्यान का.

 

क्या तुम्हें उपहार दूँ,

प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 861

Comment

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Comment by Sarita Bhatia on February 10, 2014 at 2:16pm

सुन्दर कोमल भावनाएं ,बधाई नीरज जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 10, 2014 at 1:54pm

भाई नीरज जी प्रियतम को समर्पित अथाह प्रेम को सुन्दरता से उकेरा है आपने सुन्दर शब्द संयोजन बहुत ही सुन्दर सुकोमल भाव भरी रचना बहुत बहुत बधाई आपको.

Comment by Shyam Narain Verma on February 10, 2014 at 1:22pm
सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई ....

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