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कुण्डलिया [सरिता भाटिया]

डरना कैसा मौत से, यह तो सच्ची यार
धोखा देती जिन्दगी , मौत निभाए प्यार /
मौत निभाए प्यार , साथ है लेकर जाती
सबक जिंदगी रोज, नया हमको सिखलाती
नेक मौत का काम, सबकी पीर को हरना
सरिता कहे पुकार, मत तुम मौत से डरना //

.....................................................

................मौलिक व प्रकाशित ...........

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Comment by Sarita Bhatia on February 10, 2014 at 9:08pm

ठीक कहा आदरणीय रमेश भाई 

Comment by Sarita Bhatia on February 10, 2014 at 9:07pm

आदरणीय गिरिराज जी कुण्डलिया आपको पसंद आई तो रचना सार्थक हुई ,हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 10, 2014 at 9:03pm

आदरणीय राम जी तह दिल से शुक्रिया 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:22pm

बहुत ही सुंदर आदरणीया मृत्यु अटल सत्य है तो डर भी तो एक सत्य ही है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 5:48pm

आदरणीया सरिता जी , बहुत सुन्दर कुंडलिया की रचना की आपने , आपको बधाई ॥

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 3:12pm

यथार्थ से अवगत कराती सुन्दर कुण्डलिया छंद हार्दिक बधाई आदरणीया सरिता जी /// सादर

Comment by Sarita Bhatia on February 10, 2014 at 2:14pm

तह दिल से शुक्रिया अरुण स्नेह बनाये रखें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 10, 2014 at 12:37pm

आदरणीया सरिता जी वाह बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया छंद आनंद आ गया पढ़कर बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Sarita Bhatia on February 8, 2014 at 4:09pm

आदरणीया मीना जी शुक्रिया 

Comment by Meena Pathak on February 8, 2014 at 11:57am

बहुत सुन्दर सरिता जी .. बधाई 

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