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नवगीत--(उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया)

हॅसी रूप कलियों का जब मुस्कुराया,
उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया।।

बहारों की रानी,

राजनीति पुरानी।
नर्इ-नर्इ कहानी,

जवानी-दीवानी।
महगार्इ बढ़ाकर,

नववधू घर आती।
दिशाएं भी छलती,

गरीबी की थाती।
अमीरों का राजा, अल्ला-राम आया।। 1

सजाते हैं संसद,

समां बर्रा छत्ता।
परागों को जन से,

चुराती है सत्ता।
अगर रोग-दु:ख में,

पुकारे भी जनता।
शहर को जलाकर,

कमाते हैं भत्ता।
चुनावों का सस्ता गल्ला शाम आया।। 2

तरसती है शिक्षा,

बिलखती है दीक्षा।
चलन से छले न्याय,

सत, करती प्रतीक्षा।
चिकित्सा की मर्जी,

अनिशिचत है भिक्षा।
उधारी में लटके,

किसानों की इच्छा।
नहीं बिजली-पानी, हल्ला काम आया।। 3

के0पी0 सत्यम मौलिक व अप्रकाशित


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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 20, 2014 at 8:42pm

आ0 नीरज भार्इजी, आशुतोष भार्इजी व निकोर सर जी, आप सभी का बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,

Comment by vijay nikore on February 20, 2014 at 2:15am

अच्छे बिम्ब और भाव हैं... आपको रचना के लिए बधाई।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 14, 2014 at 4:38pm

आदरणीय केवल जी ..

अगर रोग-दु:ख में,

पुकारे भी जनता।
शहर को जलाकर,

कमाते हैं भत्ता।
चुनावों का सस्ता गल्ला शाम आया।। ..इस बेहतरीन नवगीत की इन बिशेष पंक्तियों के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Neeraj Neer on February 13, 2014 at 6:52pm

नहीं बिजली-पानी, हल्ला काम आया। बहुत यथार्थ परक रचना .. सुन्दर ..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 7, 2014 at 7:00pm

आदरणीय सौरभ सर जी, सादर प्रणाम! आपका हार्दिक आभार। सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 7, 2014 at 6:59pm


आदरणीय अन्नपूर्णा जी एक बार फिर आपका हार्दिक आभार। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 4:32pm

कई बिम्ब ध्यान खींचते हैं. अच्छे हैं. इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ

Comment by annapurna bajpai on February 6, 2014 at 1:56am

सुंदर नव गीत बधाई आपको आ0 केवल भाई जी । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2014 at 8:37pm

आ0 अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by annapurna bajpai on February 4, 2014 at 11:38pm

सुंदर नवगीत आ0 केवल भाई जी , बधाई आपको । 

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