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श्रवण कुमार ( लघु कथा )

श्रवण कुमार

“आप बड़ी खुशकिस्मत हो भाभी जो आपको इतना हीरे जैसा बेटा दिया भगवान ने । आपकी हर बात मानता है आपका कितना सम्मान करता है, कोई बुरी लत नहीं , कोई गलत रास्ता नहीं, वरना आजकल की औलादें तो बस पूछो ही मत ।“ एक ठंडी सी आह भर कर कामिनी देवी ने अपनी भाभी से कहा । “ हाँ कामिनी तू सच कह रही है, आज कल कहाँ बच्चे बूढ़े माँ बाप की चिंता करते है सच मै बड़ी भाग्यशाली हूँ जो हीरे जैसा बेटा है मेरा , एकदम श्रवण कुमार। “ शीला जी ने अपनी ननद की बात का समर्थन किया ।

आज शीला जी का शव आँगन के बीचो बीच रखा था सब मेहमान एकत्र हो गए थे पर बेटा अभी तक न आया था । लोग फोन पर फोन किए जा रहे थे वो उठता कैसे ? उठाने वाले का ही पता  नही था । वो अपनी रंगीनियों मे मस्त था । 

संशोधित 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 11:23am

अंत को क्या कर दिया आपने ? कुछ स्पष्ट ही नहीं हो रहा है. क्या बेटा घर छोड़ कर भाग गया ? क्यों फोन नहीं उठा रहा है ? और, उसका नाम भी श्रवण कुमार की जगह श्रावण कुमार हो गया है.

सादर

Comment by annapurna bajpai on February 5, 2014 at 11:42pm

आदरणीय बृजेश जी मैंने कुछ परिवर्तन किए है अब कथा का कहन बदल गया है । पुनः देखे । 

Comment by बृजेश नीरज on February 2, 2014 at 10:21pm

अच्छी लघु कथा! आपको हार्दिक बधाई!

लघु कथा गद्य की वह विधा है जिसमें कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया जाता है. सपाट बयानी से बचना चाहिए. इस कथ्य को अलग रूप दिया जा सकता था! आदरणीय शुभ्रांशु जी के कहे पर ध्यान दें!

Comment by annapurna bajpai on February 2, 2014 at 9:06pm

आ0 भण्डारी जी , आ0 वंदना जी , आ0 जितेंद्र जी , आ0 कुंती दीदी ,कथा को पसंद कर अपने विचार देने के लिए आप  सभी हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on February 2, 2014 at 9:04pm

आ0 शुभ्रांशु जी आपके कथन से मै भी सहमत हूँ कि एतिहासिक या पौराणिक नायकों का जो चरित्र है मन उसके आस पास ही चरित्र को देखना चाहता है । यहाँ कथा का नायक भी अपनी माँ का पूरा ख्याल रखता है इसी वजह से दोनों स्त्रियाँ आपस मे बात करती हैं तो यही कहती है कि बेटा एकदम श्रवण कुमार जैसा है न कि श्रवण कुमार । अब बात आती है कि उसे शराबी देखने की , यह बात उसके घर के किसी सदस्य को नहीं पता होती है की वह दुहरे व्यक्तित्व का है , जो कि अंत मे उजागर होती है जब उसकी माँ का देहांत हो जाता है और काफी समय व्यतीत होने पर भी जब वह नहीं आता तब उसे खोजा जाता है ।

आशा है आपके  जिज्ञासु प्रश्न का उत्तर दे पाई हूंगी । 

Comment by Shubhranshu Pandey on February 2, 2014 at 5:53pm

आदरणीय अन्न्पूर्णा जी, 

आज कल के युवाओं के रहन सहन और उनके परिवेश पर सुन्दर कथा.

श्रवण कुमार को माता पिता के सेवा भाव के बदले एक नये रुप में प्रस्तुत किया है. ऎतिहासिक या पौराणिक नायकों को अपने चरित्र होते हैं और मन उसी चरित्र के आसपास कथा को बढते हुये देखना चाहता है. श्रवण को बेवडा़ देखना कुछ अलग लगा.

कथा में श्रवण का अचानक पाला बदलना या रुप् बदला कथा के विस्तार में रुकावट लगता है..सुधीजन अपने विचार देंगे.

सादर.

Comment by coontee mukerji on February 2, 2014 at 4:44pm

अन्नपूर्णा जी  (  भंडारी जी की बात को लेकर संस्कार हीन, पश्चिमी सभ्यता मे पले  बच्चों से और क्या उम्मीद कर सकते हैं ........)पशिचम देश में भी संस्कारी परिवार होते हैं...हम बेकार में पश्चिमी सभ्यता को गाली देते है......जबकि उसी सभ्यता को अपनाते जा रहे हैं...वहाँ तो शराब पीकर अपनी मरी माँ की लाश आँगन में बेटा छोड़ता नहीं है. यह बात तो सिर्फ यहाँ होती है और दोष पश्चिमी सभ्यता को दी जाती है....वैसे किसीका भी दोष नहीं है....जब तक हम सही तरीके से किसी सभ्यता के गुण दोष न जान लें.....कुछ न कहना ही बेहतर है.)......आपकी कथा एक  बिगड़े शराबी बेटे की कथा है....संस्कार घर से शुरू होती है.....हम जैसा संस्कार अपने बच्चों को देते हैं...बाद में उसी का फल हमें मिलता है.सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 2, 2014 at 9:43am

आदरणीया मीना दीदी की बातों से पूर्णत: सहमत हूँ, कोई भी माता पिता अपने बच्चों को कभी गलत संस्कार नही देते, ज्यादातर बच्चे ही माता-पिता के लाड़-प्यार का गलत फायदा उठा लेते है.

बहुत बढ़िया सन्देश देती लघुकथा पर बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by vandana on February 1, 2014 at 9:47pm

बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2014 at 7:12pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , संस्कार हीन, पश्चिमी सभ्यता मे पले  बच्चों से और क्या उम्मीद कर सकते हैं आप , सुन्दर लघुकथा  के लिये आपको बधाइयाँ ॥

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