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मेरी रचना ऐसी हो
मेरी रचना वैसी हो
घूंघट में है रचना मेरी
न जाने वो कैसी हो
शृंगार करूँ मैं सदा कलम का
नित्य हृदय के भावों से
उस पलक द्वार पर देगी दस्तक
जो मेरी रचना की अभिलाषी हो
मौन अधर हों
मौन नयन हों
मौन प्रेम का
हर बंधन हो
बिन बोले जो
कह दे सब कुछ
मेरी रचना ऐसी हो,

हाँ ,मेरी रचना ऐसी हो…….

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 30, 2013 at 1:05pm

aa.Shyam Narain Verma jee rachna par aapkee madhur prashansa ka haardik aabhaar

Comment by Shyam Narain Verma on December 30, 2013 at 10:41am
बहुत सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ........

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