For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहर ... २२२ २२२ २२ 

वो जब से सरकार हुए हैं

सब कितने लाचार हुए हैं

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

Views: 911

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:46pm

आदरणीय आशीष जी .. .बहुत ही खुबसूरत तरीके से आपने हौसलाफजाई की है :)) इसके लिए ह्रदयतल  से आभारी हूँ ..आपको गज़ल पसंद आया .जानकार  बहुत ख़ुशी हुयी .. सादर

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 26, 2013 at 8:37pm

ताज़ा हालात बयां करती बढ़िया ग़ज़ल महिमा जी |

अशआर सभी दमदार हुए हैं
'आप' गजब ही फनकार हुए हैं | :))

बधाई !!

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:28pm

आदरणीय श्याम नारायण जी.. आपका हार्दिक आभार

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:27pm

आदरणीय अभिनव जी .ये आपकी सह्रदयता है ..जो मेरी कोशिश को आपने  इतना  आशीर्वाद दिया है  .. आपके जैसे अनुभवी  और  गज़ल के धनी जानकार  से इतना सारा प्रोत्साहन पाकर मन प्रफुल्लित है .. आपको भी नव वर्ष की ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें .. उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:21pm

आदरणीय जितेन्द्र जी .. बहुत -२ हार्दिक  आभार .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:18pm

आदरणीय धामी जी आपको गज़ल अच्छी लगी इसके लिए ..बहुत-२  आभार..सहयोग बना रहे.. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:16pm

आदरणीय अजय शर्मा जी .. बिलकुल सही फ़रमाया ... वैसा भी हो सकता है ... मैंने "अबकी" जानबुझ कर लिखा है ..आपका बहुत -२ शुक्रिया.. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:11pm

आदरणीय शिज्जू जी .. आपके उत्साहवर्धन करते टिप्पणी के लिए ह्रदयतल से आभारी हूँ  .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:08pm

आदरणीया कुंती जी ... आपको प्रस्तुती अच्छी लगी इसके लिए ह्रदय तल से आभार .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:06pm

आदरणीय गिरिराज जी .. पसंद और प्रोत्साहन के लिए   आपका बहुत - २ शुक्रिया ..सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
16 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service