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एक गज़ल ....

बहर ... २२२ २२२ २२ 

वो जब से सरकार हुए हैं

सब कितने लाचार हुए हैं

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

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Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:46pm

आदरणीय आशीष जी .. .बहुत ही खुबसूरत तरीके से आपने हौसलाफजाई की है :)) इसके लिए ह्रदयतल  से आभारी हूँ ..आपको गज़ल पसंद आया .जानकार  बहुत ख़ुशी हुयी .. सादर

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 26, 2013 at 8:37pm

ताज़ा हालात बयां करती बढ़िया ग़ज़ल महिमा जी |

अशआर सभी दमदार हुए हैं
'आप' गजब ही फनकार हुए हैं | :))

बधाई !!

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:28pm

आदरणीय श्याम नारायण जी.. आपका हार्दिक आभार

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:27pm

आदरणीय अभिनव जी .ये आपकी सह्रदयता है ..जो मेरी कोशिश को आपने  इतना  आशीर्वाद दिया है  .. आपके जैसे अनुभवी  और  गज़ल के धनी जानकार  से इतना सारा प्रोत्साहन पाकर मन प्रफुल्लित है .. आपको भी नव वर्ष की ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें .. उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:21pm

आदरणीय जितेन्द्र जी .. बहुत -२ हार्दिक  आभार .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:18pm

आदरणीय धामी जी आपको गज़ल अच्छी लगी इसके लिए ..बहुत-२  आभार..सहयोग बना रहे.. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:16pm

आदरणीय अजय शर्मा जी .. बिलकुल सही फ़रमाया ... वैसा भी हो सकता है ... मैंने "अबकी" जानबुझ कर लिखा है ..आपका बहुत -२ शुक्रिया.. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:11pm

आदरणीय शिज्जू जी .. आपके उत्साहवर्धन करते टिप्पणी के लिए ह्रदयतल से आभारी हूँ  .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:08pm

आदरणीया कुंती जी ... आपको प्रस्तुती अच्छी लगी इसके लिए ह्रदय तल से आभार .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 8:06pm

आदरणीय गिरिराज जी .. पसंद और प्रोत्साहन के लिए   आपका बहुत - २ शुक्रिया ..सादर

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