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“दाग“ 

********

मूर्खता है ,

होली में रंगे कपड़ों से

दाग छुड़ाने की कोशिश ।

कोई कहता भी नहीं उसे

दाग दार ।

वो अलग हैं , दागियों से

वो होली के हैं । बस ,

स्वीकार करें ,

वैसे ही ,

अगर मजबूरियाँ हैं ,  पहन भी लें ।

कोई न कहेगा , दागदार , कहेगा होली के ,

दाग दार कहा ही

तब जाता है

जब , सारा कुछ हो उजला

और

दाग हों एक –दो

इंगित भी किया जाता है इसे ही ,

प्रयास भी किया जा ता है

छुड़ाने का ,

रहती हैं अपेक्षाएँ भी

दाग छुड़ा लिये जाने की

ताकि , हो सकें आप ,

निर्मल , बेदाग ,पवित्र ॥

ये तो शुभ सूचक है  ।

आनन्द का ,

खुशी का कारण है ।

मुझे प्राप्त हुआ , ये आनन्द

सौभाग्य से ,

कल भी , और पहले भी

बाटना चाहता हूँ  मै , देना चाहता हूँ

उनको भी ,जो उदास हैं  

कहता हूँ , इसीलिये

उनसे,

दो – एक दाग दिख रहे हैं

कपड़ों में आप के भी ॥

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2013 at 11:05am

रहती हैं अपेक्षाएँ भी

दाग छुड़ा लिये जाने की

ताकि , हो सकें आप ,

निर्मल , बेदाग ,पवित्र ॥

आदरणीय गिरिराज भाई , बिशेष तौर पर इन पंक्तियों के लिए बधाई स्वीकारें .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 10:23pm

आदरणीय शिज्जू भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2013 at 8:44pm

आदरणीय गिरिराज सर कमियाँ तो हर किसी में होती है, ऋषि वाल्मीकि  को तो आप जानते ही हैं, बहरहाल आप इस रचना के लिये बधाई स्वीकार करें आप अपनी बात कहने में कामयाब रहे

कृपया ध्यान दे...

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