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ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
...
कभी चाँदनी छूने आया करेगी।
सितारों की ज़ीनत बुलाया करेगी॥
...
बदन की मुलायम तहों में समेटे,
नदी पत्थरों को सुलाया करेगी।
...
भटकता फिरेगा कहीं पे अँधेरा,
कहीं रोशनी गीत गाया करेगी।
...
परिंदों की परवाज़ क्या खूब होगी,
हवा जब उन्हें आज़माया करेगी।
...
नई चूड़ियों से खनकती कलाई,
सवेरे-सवेरे जगाया करेगी।
...
ज़रा सी किसी बात पे रो पड़ूँगा,
कभी ज़िंदगानी हँसाया करेगी।
...
कहूँगा उदासी भरा शेर कोई,
अगर याद तेरी सताया करेगी।
...
किसी और का नाम ले के जवानी,
'रवी' की कहानी सुनाया करेगी।
...
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-23.12.2013

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Comment

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Comment by Ravi Prakash on December 23, 2013 at 4:28pm
कोटि कोटि धन्यवाद आ॰ ब्रह्मचारी जी।
Comment by Shyam Narain Verma on December 23, 2013 at 4:22pm

क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 

Comment by S. C. Brahmachari on December 23, 2013 at 4:18pm
नई चूड़िओं मे खनकती कलाई , सबेरे सबेरे जगाया करेगी ! --- अनुपम भाव , अनुपम प्रस्तुति , बधाई ! अतीत मे गोते लगवाने के लिए .......
Comment by Ravi Prakash on December 23, 2013 at 4:14pm
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया आ॰ मीना जी एवं शिज्जू जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2013 at 3:05pm

बहुत बढ़िया भाई रविप्रकाश जी बेहतरीन ग़ज़ल कहा है आपने हरेक शेर बेमिसाल है दिली दाद कुबुल करें

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 2:44pm

बहुत सुन्दर गज़ल हुई आदरणीय | सादर  बधाई 

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