For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आहत माँ का दर्द

मै जीना चाहती हूँ माँ !!

कैसे जियेगी तू मेरी बच्ची ?
समय के साथ ये सब
श्रद्धांजलि और प्रदर्शनों
के आडम्बर शांत हो जायेंगे
सब कुछ भूल, लग जायेंगे
सभी अपने अपने काम में
पर तेरा जीवन नही बदलेगा !!
   
जो बच गई
जीवन तेरा और भी नर्क हो जाएगा
तू जब भी निकलेगी घर से
तेरी तरफ उठेंगी सौकड़ों आँखे  
तू भूलना भी चाहेगी तो
दिखा – दिखा उंगुली    
लोग तुझे भूलने नही देंगे
जानना चाहेंगे सभी ये कि  
कैसे हुआ ये ?

जीवन भर तू उन दरिंदों
का लिजलिजा स्पर्श
अपने शरीर पर बिलबिलाते हुए
कीड़ों की तरह महसूसेगी
खुद ही खुद से घिन करेगी
प्रश्न करती आँखों का
सामना कब तक करेगी ?   

ये हमारा समाज
तुझे जीने नही देगा
कौन अपनाएगा तुझे ?
बोल मेरी बच्ची !
तुझे इस हाल में
मै ना देख पाऊँगी !!
 
सारा जीवन तिल-तिल कर
मरने से अच्छा
तू अभी मर जा मेरी बच्ची

तू अभी मर जा !!

मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित

Views: 987

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 7:49pm

आदरणीया मीना जी ... बहुत -२ हार्दिक बधाई इस मार्मिक रचना के लिए .. हर पंक्ति पर  रोगंटे खड़े हो गए ... कितनी विवशता , उफ़ कितनी लाचारी है .... 

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 12:17pm

आदरणीय गिरिराज जी, प्रणाम

बहुत बहुत आभार, रचना को आप का आशीर्वाद मिला, लिखना सफल हुआ | सादर

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 12:14pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सच कहा आप ने, सहमत हूँ

बहुत बहुत आभार | सादर

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 12:12pm

प्रिय वंदना ढेरों आशीष के साथ बहुत बहुत आभार

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 12:10pm

आदरणीय सौरभ जी ... सादर प्रणाम

हृदय से आभार स्वीकार कीजिये रचना को अपने स्नेह और आशीष से सिंचित करने के लिए, लिखना सार्थक हुआ मेरा | सादर

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 12:01pm

आदरणीया कल्पना दी, आप ने सच कहा कि कोई माँ ऐसा नही कहती पर उस दिन मैंने जो 'उसकी' दशा का वर्णन सुना टीवी पर तो मेरा हृदय कराह उठा था और उस समय आहत हृदय और नयन भर आँसू लिए कलम पकड़ लिया था मैंने और ये रचना खुद-ब-खुद बन गई थी | पूरे एक वर्ष बाद मैंने ये रचना पोस्ट की वो भी बहुत संकोच के साथ क्यों कि मुझे डर था कि ये रचना आप सब सिरे से नकार ना दें पर इस रचना के जरिये जो स्नेह मुझे मिला है उसके लिए मै हृदय से आप सब की आभारी हूं | सादर

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 11:52am

परम आदरणीय विजय निकोर जी रचना को अपने स्नेह से सिंचित करने हेतु सादर आभार स्वीकारें !!

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 11:50am

आदरणीया महेश्वरी जी बहुत आभार | सादर

Comment by Meena Pathak on December 20, 2013 at 11:49am

आदरणीय संजय हबीब जी सादर आभार स्वीकारें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 10:57am
आदरणीय मीना जी , सामाजिक बुराइयाँ और माँ बेटी का दर्द दोनो को आपने बहुत सुन्दरता से, गहराई से जिया है ।मार्मिक रचना के लिये आपको अनेकों बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service