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हाथी हाथ से नहीं ठेला जाता (लघुकथा)

''मिश्रा जी, बेटी का बाप दुनिया का सबसे लाचार इंसान होता है. आपको कोई कमी नहीं, थोड़ी कृपा करें, मेरा उद्धार कर दें. बेटी सबकी होती है.' कहते-कहते दिवाकर जी रूआंसे हो गए । मिश्रा जी का दिल पसीज गया ।

अगले वर्ष घटक द्वार पर आए तो दिवाकर जी कह रहे थे

''अजी लड़के में क्‍या गुण नहीं है, सरकारी नौकर है. ठीक है हमें कुछ नहीं चाहिए, पर स्‍टेटस भी तो मेनटेन करना है. हाथी हाथ से थोड़े ना ठेला जाता है. चलिए 18 लाख में आपके लिए कनसिडर कर देते हैं और बरात का खर्चा-पानी दे दीजिएगा, और क्‍या. बेटी आपकी है जैसे चाहे संवारें या एक जोड़ी कपड़े में विदा कर दें.. हमें कोई आपत्ति नहीं ''

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

राजेश 'मृदु'

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Comment by राजेश 'मृदु' on December 16, 2013 at 5:22pm

आदरणीय कुंति जी, मेरे पहले प्रयास को स्‍वीकारने के लिए आभार, मैंने कोशिश की है आगे देखें कितना सफल होता हूं

Comment by राजेश 'मृदु' on December 16, 2013 at 5:21pm

आपका सादर आभर मीना जी

Comment by coontee mukerji on December 16, 2013 at 5:10pm

18 लाख से थोड़ा थोड़ा कम नहीं हो सकता बाबू जी. लड़की भी तो कमाऊ है. हज़ारों तो घर में लाएगी ही आपकी पुत्रवधू होगी.हम थोड़े ही न दखल देंगे.'' इधर दहेज  अब कम देखने को मिल रहा है. लव मेरिज अपना वर्चस्व फैला रहा है.समय ,समय से ही अपना काम करेगा.लघु कथा अच्छी है अब भी बेटे  और दहेज का माइड सेट अधिकतर लोगों में बना हुआ है. राजेश जी आपने एक लालची मनोवृत्ति के इंसान की लालच का हद दिखाया है.हार्दिक बधाई.सादर

Comment by Meena Pathak on December 16, 2013 at 4:27pm

समय बदल रहा है, इधर मैंने कई शादियों में  दहेज का नामोनिशान नही देखा है | लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय राजेश जी  

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