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ग़ज़ल -सिर हमारे इल्ज़ाम क्यों

2 1 2 2          2 2 1 2

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दफ़्तरों में आराम क्यों

फाइलों में है काम क्यों

 

सुरमयी सी इक शाम है

फिर उदासी के नाम क्यों

 

कर गया वो करतूत पर

सिर हमारे  इल्ज़ाम क्यों

 

नाम चाहिए था उसको भी

हो गये हम गुमनाम क्यों

 

इश्क़ फ़रमाया उसने भी

सिर्फ हम ही बदनाम क्यों

 

काँटों की इस बस्ती में भी

वो बना है गुलफाम क्यों

.

.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by sanju shabdita on December 8, 2013 at 3:48pm

कर गया वो करतूत पर

सिर हमारे  इल्ज़ाम क्यों    वाह क्या कहने ; आज के समय का यही हाल है , करे कोई भरे कोई

खूबसूरत ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकारें अमित जी

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