For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेटी..रजनी ! तुम्हारे मामाजी के लड़के से, तुम्हारी ननद याने अपनी गायत्री की शादी, तय हो ही गई, मैं बहुत खुश हूँ, बस..! उन लोगो से लेनदेन की बात संभाल लेना, तुम तो जानती ही हो. आजकल महंगाई आसमान छू रही है.......सुलोचना जी ने अपनी बहु को बेटी बनाकर, बड़े ही प्यार से कहा..

जी हाँ..! माँ जी..महंगाई तो पिछले वर्ष भी आसमान से टिकी हुयी थी, जब आपने मेरे मायके वालों से लाखों का सोना और पूरी गृहस्थी का सामान मांग लिया था..खैर, वैसे मैंने मामाजी को फालतू खर्च की बजाय, मंदिर से शादी के लिए राजी कर लिया है.......रजनी ने अपनी सास के नहाने के गर्म पानी में, थोडा ठंडा पानी डालते हुए कहा..

   जितेन्द्र ' गीत '

 ( मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 978

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 3, 2014 at 10:21pm

आपका हार्दिक आभार  आदरणीय भुवन जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by भुवन निस्तेज on April 1, 2014 at 10:26pm

यथार्थ पर प्रकाश डालती हुयी रचना....

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 11:44pm

रचना पर आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुनील गुप्ता जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Sunil Gupta on November 20, 2013 at 12:15pm

"देखन में छोटो लगें घाव करें गम्भीर."

आपकी लघुकथा पर यह पंक्ति सटीक बैठ रही है.

सुंदर कथ्य और संतुलित एवं सधे हुए व्यंग हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 12:00pm

आदरणीय आशीष जी, इस बात को जवाब कह लो, या एक वर्ष से अपने अन्तर में  दबी हुयी, बहु की भावनाओं को पहुची हुयी ठेस जो आज एक सबक भी दे गई और अपने संस्कारों से परिवार के प्रति सही जिम्मेदारी भी निभा गई

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से बड़ा मनोबल मिला, स्नेह बनाये रखियेगा, सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 11:14am

आदरणीय शुभ्रांशु जी, लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया का बड़ी बेसब्री से इन्तजार रहता है, आप सच कह रहे है, कुछ लोग जीवन को खेल समझ संबंधों और परिस्थितियों से खेलते ही हैं, खेल में जीतने के बाद भी हार मिलती है, और हारने वाले को एक सकारात्मक अनुभव,

आपका हृदय से आभार , स्नेह बनाये रखियेगा सादर!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on November 20, 2013 at 10:29am

वाह ! जैसे को तैसा जवाब !!
बढ़िया लघु-कथा है भाई जीत जी !
हार्दिक बधाई !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 10:16am

आदरणीय सौरभ जी, मुझ जैसे पाठकमात्र की कोशिशो पर  रंग आप और आप जैसे ओ बी ओ के सभी रचनाकारों के स्नेह, मार्गदर्शन व् आशीर्वाद से चढ़ रहा है, आपके कहने अनुसार भाषा पर भी प्रयासरत रहूँगा, आपका हृदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 9:56am

सर्वप्रथम आपका हृदय से आभार आदरणीया डा.प्राची जी, आदरणीया मैं एक सकारात्मक पहलु पर विचार व्यक्त करते हुए यह कहूँगा कि माँ तो माँ ही होती है चाहे पति की माँ हो पत्नी की, शायद ईश्वर ने माँ का हृदय ही ऐसा बनाया है, सिर्फ कहीं कहीं हमने सास-बहु के रिश्ते को बदनाम कर रखा है, इसे देखा जाये तो शायद इक नए रिश्ते पर असुरक्षित मानसिकता, जिसमे नारी की भावनाओं को ईश्वर द्वारा अधिक संवेदनशील बनाया जाना , अगर सास या बहु शिक्षित या समझदार है तो इस संवेदनशील भावना के रहते भी परिवार स्वरुप गाड़ी को,उनके द्वारा किसी भी ट्राफिक जाम से सुरखित निकाल कर ले जाया जा सकता है,

अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on November 20, 2013 at 9:37am

आदरणीय जीत जी, 

सम्बन्धों और परिस्थितियों से खेलते हुये सुन्दर कथा है...बधाई..

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service