For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है

बह्र : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

 

मेरे संगदिल में रहा चाहती है

वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है

 

सदा सच कहूँ वायदा चाहती है

वो शौहर नहीं आइना चाहती है

 

उतारू है करने पे सारी ख़ताएँ

नज़र उम्र भर की सजा चाहती है

 

बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने

चरागों को जब जब हवा चाहती है

 

न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती

मुई इश्क में भी नफ़ा चाहती है

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2014 at 10:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया Neeraj Mishra "प्रेम"जी

Comment by Neeraj Nishchal on November 22, 2013 at 10:38pm
सच मेँ बहुत खुबसूरत
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:35pm

बहुत बहुत धन्यवाद  Saurabh Pandey जी। क्यूँ को गिराकर पढ़ा जा सकता है। कई जगह मैंने पढ़ा है। उदाहरण के लिए गुलज़ार साहब की ये ग़ज़ल दे रहा हूँ।

बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२

आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ 
उठता तो है घटा-सा बरसता नहीं धुआँ 

चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ 

आँखों के पोंछने से लगा आँच का पता 
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ 

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं 
मेहमाँ ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 9:48pm

बहुत बहुत धन्यवाद रमेश कुमार चौहान जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 9:48pm

बहुत बहुत धन्यवाद Nilesh Shevgaonkar जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 9:47pm

VISHAAL CHARCHCHIT जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 9:47pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय vijay nikore जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 9:45pm

बहुत बहुत धन्यवाद Sushil.Joshi जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 9:44pm

बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र 'गीत' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 9:25pm

बहुत बहुत शुक्रिया ram shiromani pathak जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
43 minutes ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service