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ग़ज़ल- सारथी || अलग सबसे तबीयत है करें क्या ||

अलग सबसे तबीयत है करें क्या

कि इक बुत से मुहब्बत है करें क्या /१

दुआ में मांगते हैं मौत मेरी

सितमगर की शरारत है करें क्या /२

न कोई आ रहा सुन डुगडुगी अब

मदारी को शिकायत है करें क्या /३

ये आदत छोड़िये जी शाइरी की 

मगर दिल की जरुरत है करें क्या /४

तमाशा देख लो उस नामवर का

लिबासों की इबादत है करें क्या /५

हमें दिल में सनम ने रख लिया है

न मरने की इजाजत है करें क्या /६

अरे अब आसमां मत बांट देना

ज़मीं ने की फज़ीहत है करें क्या /७

मियां तुम लाख खुद को पाक़ बोलो

नज़र आती हकीक़त है करें क्या /८

किताबें बंद कर लो सारथी जी

कि सांसों  की बगावत है करें क्या /९

........................................................

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

वज्न १२२२ १२२२ १२२ 

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Comment

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Comment by coontee mukerji on October 20, 2013 at 1:26am

हमें दिल में सनम ने रख लिया है

न मरने की इजाजत है करें क्या//६...........बहुत खूब.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 11:06pm

बढिया प्रयास हुआ है, भाईजी.

कोई मिसरा अनावश्यक कि से शुरु होना उचित नहीं माना जाता.

बाकी कई अश’आर थोड़ा और समय चाहते थे.

शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2013 at 10:13pm

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० बैद्य नाथ जी 

ग़ज़ल का रदीफ़ बहुत पसंद आया ..

हार्दिक बधाई 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 5:08pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी :

कि आदत छोड़िये जी शाइरी की 

मगर दिल की जरुरत है करें क्या.....

कोटिशः धन्यवाद प्रेषित कर रहा हूँ , मान्यवर कृतग्य रहूँगा !...जी, मैं हमेशा कोशिश करता हूँ लेकिन हर बार  तज़कीर-ओ-तानीस(पु.स्त्री लिंग), वाहिद-ओ-जमा (एक-अनेक वचन) और लफ्ज़ों के हिज्जे के मुआमले में कहीं ना कहीं चूक हो ही जाती है। सिखलाते रहिएगा ...उपकार होगा । अनेक धन्यवाद सहित :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 3:19pm
आदरणीय बैद्यनाथ भाई , लाजवाब गज़ल कही है !!!
मियां तुम लाख खुद को पाक़ बोलो
नज़र आती हकीक़त है करें क्या//८ शानदार शेर ढेरों दाद कुबूल करें

कि आदत छोड़िये जी शाइरी का ---आदत स्त्री लिंग है , की -- कर लीजिये , तकाबुले रदीफ का दोष भी नही रहेगा !!!!
Comment by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 2:08pm

आदरणीय  SANDEEP KUMAR PATEL साहिब ... दिली शुक्रिया आपका ! अनेक धन्यवाद सहित ! :)

Comment by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 2:07pm

जनाब  शकील जमशेदपुरी साहिब .... बिल्कुल सही फरमा रहे हैं आप, मुआफी चाहता हूँ,  भूलवश ऐसा हुआ है !  ..इस ओर ध्यान दिलाने के लिए बेहद शुक्रिया आपका ! सादर !

आइन्दा कोशिश करूँगा इस तरह के दोषों पर पहले ही विचार कर लूँ प्रेषित करने से पहले! सादर :) 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 1:38pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है वाह आदरणीय दिली दाद क़ुबूल करें

आदरणीय शकील जी की बात से इत्तेफाक रखता हूँ इन्हें भी बधाई

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 12:47pm

आदरणीय Baidya Nath 'सारथी' जी,
हाल ही में मैंने इस बहर पर लिखने की कोशिश की थी, पर निभाने में काफी मुश्किल हो रही थी। आपने जिस आसानी के साथ बह्र को निभाया है, उससे काफी हौसला मिला है।

हां एक बात जरूर जोड़ना चाहूंगा। चौथे, पांचवें और सातवें शेअर में तकाबुले रदीफ का दोष है। जरा देख लीजिएगा। सादर।

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