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ग़ज़ल (७) : ख़ुदकुशी अच्छी नहीं होती !

बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती 
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती//१ 
.
चलो माना, के जीने के लिए, खुशियाँ जरूरी है 
जरा भी ग़म न हो, ऐसी ख़ुशी, अच्छी नहीं होती//२ 
.
भले ही, आह उट्ठे है !!, दिलों से, वाह उट्ठे है !! 
मगर सुन, आँख की, बेपर्दगी अच्छी नहीं होती//३
.
तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में 
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी नहीं होती//४ 
.
नसों को चीर कर, ग़म की जड़े भी, फैल जाती हैं 
बहुत ग़मगीन हो, तो ज़िंदगी, अच्छी नहीं होती//५ 
.
उजाले की तरह, जो लोग हैं, बचके जरा मिलना 
नज़र अंधी करे, वो रौशनी, अच्छी नहीं होती//६ 
.
वही पहनो, वही ओढ़ो, तेरे ज़ेहन, को जो भाये 
दिखावा बन चले, जब सादगी, अच्छी नहीं होती//७ 
.
तड़प कितनी, हरारत क्या, जरूरी है, समझ लेना 
बराबर गर नहीं, वो आशिक़ी, अच्छी नहीं होती//८ 
.
गज़लगोई नई है, ‘नाथ’ ना सर, को क़लम कर दे 
नये हथियार से, बाज़ीगरी, अच्छी नहीं होती//९ 
.

"मौलिक व अप्रकाशित"

वज्न : बहुत-12/ज्यादा-22/भी-1/हो-2/पाकीज़गी-2212/अच्छी-22/नहीं-12/होती-22 [1222-1222-1222-1222]

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Comment

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Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 20, 2013 at 1:33pm

नमन आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहब....हार्दिक नमन.../..बहुत बहुत शुक्रिया....आपके सटीक सुझाव हेतु........नमन !!!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 11:14pm

बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती 
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती.. . .. क्या बात है ..  आपके खयाल जरा हटके हैं भाई.

आप उर्दू शब्दों के अधिक प्रयोग करते हैं उस हिसाब से तज़ुर्बा या जेहन आदि शब्द गलत ढंग से प्रयुक्त हुए हैं. इसे देख लें.

दूसरे, कई अशार ग़ज़ब के होते. हो नहीं पाये.

आपने उनसे उनके तोतलाने की अवस्था में ही सरेचौक भाषण करवा लिया.

खैर ..

शुभ-शुभ

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 3:40pm

परम आदरणीय...गिरिराज भंडारी साहब...चरण वंदन...आप सभी महानुभावों का स्नेह है..बस और क्या..लिखते-लिखते..संभव है..सीखता चला जाऊंगा...नमन..इस आशीर्वाद के लिए.....!!!!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 3:09pm
आदरणीय रामनाथ भाई ,बहुत सुन्दर, बहुत कामयाब गज़ल कही है!!! बहुत बधाई !!!
Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 1:39pm

बहुत बहुत शुक्रिया संदीप पटेल साहब...हार्दिक आभार सी स्नेह के लिए....नमन...!!!!!

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 1:39pm

आदरणीय शकील साहब..आपने फिर एक बार सही शुभचिंतक एवं अज़ीज़ होने का फ़र्ज़ निभाया अब मेरा फर्ज़ है..इसे सही करना ..आप बिलकुल सही हैं...सादर नमन...!!!!!!!

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 1:36pm

क्या खूब संभाला है आपने काफिये को आदरणीय रामनाथ शोधार्थी जी। दिली दाद कुबूलें।

बस एक बात कहना चाहूंगा। आपने मक्ते में आपने "ना" लिया है। मेरी जानकारी में ये "न" है और इसे दो मात्रिक नहीं लिया जा सकता। मंच के जानकारों से एक बार परामर्श जरूर लें। सादर।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 1:36pm

बहुत ही शानदार अशआर कहे हैं जनाब दिली दाद क़ुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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