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नेताओं देश शर्मसार है तुम पर

जवान होते ही हैं

शहीद होने के लिए

और नेता

वह तो शासक है

सोना उनका हक है

जवान जब गोली खा रहा होता है

नेता पार्टी कर रहे होते हैं

जवानों की चिता को

मुखाग्नि भी

राजनीति का अवसर देती है

उन्हें,

शहीदों की

माओं के चाक सीने पर भी

नमक छिड़कने से भी

बाज नही आते

विलाप, क्रंदन भी

अवसर हैं वोट की तिजारत के।

नेताओं

देश शर्मसार है तुम पर।

 

मीना पाठक
 
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by coontee mukerji on October 20, 2013 at 1:34am

तीखे व्यंग्य से ओत प्रोत आप की कविता आज की सामाजिक , राजनीतिक पर करारी चोट है.

जवान होते ही हैं

शहीद होने के लिए

और नेता

वह तो शासक है.......सादर /कुंती.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 10:24pm

आपकी संवेदना और इस रचनाकर्म के प्रति साधुवाद.

एक बात :

सम्बोधन के रूप में प्रयुक्त संज्ञाओं के अंतिम ओकार में अनुस्वार नहीं होता.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2013 at 9:54pm

बहुत संवेदनशील प्रस्तुति आदरणीय मीना जी

जवानों की शहादत पर वोटों की राजनीति करने वाले नेताओं पर देश ही नहीं इंसानियत भी शर्मसार है 

ह्रदय में शूल से चुभती ऐसी सच्चाइयों के प्रति पाठकों को चेताना लेखन की सार्थकता है.

इस सार्थक प्रस्तुति के लिए साधुवाद!

Comment by विजय मिश्र on October 19, 2013 at 5:37pm
बहुत कम शब्दों में इनके घटियापन को समेटने की चेष्टा कियी आपने न तो एक नेतायन लिखा चला जाएँ इनके कुत्सित कर्मों पर . साधुवाद मीनाजी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 3:36pm
वाह वा , आदरणीता मीना जी , आज की कुत्सित राजनीति का कड़वा सच आपने बयान कर दिया !!!! बहुत वधाई !!!!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 1:40pm

बहुत ही सुन्दर रचना आपकी आदरणीया

ह्रदय से बधाई स्वीकारें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 10:12am
आज की स्वार्थ से परिपूर्ण नेताओं की राजनीति को बहुत ही बढ़िया रचना द्वारा आपने प्रस्तुत किया, बहुत बहुत बधाई आदरणीया मीना दीदी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 19, 2013 at 9:18am

देश अगर शर्मसार होता तो राजनीति से गंदगी ही साफ़ हो जाती, ५ साल हम गलियाते हैं और फिर नाकाबिलों और बाहुबलियों को वोट दे के आते हैं, क्योंकि वो हमारे धर्म के होते हैं, वो हमारी जाति के होते हैं और क्योंकि उनसे हमें कही न कही व्यक्तिगत फायदा होने की उम्मीद होती है । 

हम सुधर जाएँ तो उनको तो कुत्ता भी न पूछे । 

सुन्दर और भावप्रधान रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीया मीना पाठक जी । 

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 9:18am

बहुत सहीह चित्रण किया आपने आ. Meena Pathak  जी। भावुक हो गया। बधाई स्वीकार करें।


इसे सिलसिले में जनाब मुनव्वर राना का एक शेअर याद आ रहा है, सुनाने का मन कर रहा है—

सिपाही मोर्चे से उम्र भर पीछे नहीं हटता
सियासतदां जुबां देकर बआसानी पलटता है

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