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रंगीन पन्ने (लघु कथा)// शुभ्रांशु पाण्डेय

"धत्त्तेरे की... क्या भर देते हैं ये न्यूजपेपरों के बीच में..", मैने एकबारग़ी झल्लाते हुये कहा.


कई रंग-बिरंगे पैम्फलेट मेरे अखबार से निकल कर सरसराते हुए जमीन पर गिरते गये. इन रंगीन पन्नों में बच्चे के प्रेप में एडमिशन से ले कर नये-नये खुले इन्जिनिरिंग कॉलेज में दाखिले तक के, साड़ी खरीदने से ले कर मकान खरीद लेने तक के, या और भी न जाने क्या-क्या उपलब्ध करा देने के दावे हुआ करते हैं.
महरी झाडू लगाते हुए उन रंगीन पन्नों को बुहार कर घर के बाहर पेड़ के पास फेंक आयी, कचड़ावाले को उठा ले जाने के लिए. 

पेड़ ने चुप-चाप एक नजर उन रंगीन पन्नों पर डाली. उसे कहीं दूर अपने भाई-बन्धुओं पर कुल्हाड़ों के चलने की आवाज सुनायी दे रही थी.. ठक् ठक् ठक्....... 
नम आँखें बद किये पेड़ देर तक सिहरता रहा.... 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on October 18, 2013 at 1:08am

अनायास सी कोई घटना हो और संवेदना मुखर हो अपनी रौ में बहने लगे तो रचनाएँ प्रसूत होती हैं.
किसी रचनाकार की किसी विधा में कोई पहली कृति सदा से उसके लिए विशेष हुआ करती है. यदि वह सफल हो जाये तो उस रचना की अहमियत उसकी नज़र में और बढ़ जाती है.
संभवतः यह पहली लघुकथा है.
इस सफल लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ  

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 10:12pm

क्या शानदार बात कह दी भाई .... कामयाब कथा कही

Comment by Sushil.Joshi on October 17, 2013 at 9:08pm

आहा...... कितनी वेदना है इस लघु कथा में.... पेड़ की वेदना..... उन पर चलने वाली कुल्हाड़ी से उनके ह्रदय से निकली चीख..... इस खूबसूरत लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय शुभ्रांशु जी...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 6:21pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी , जंगलो की अनावश्यक कटाई से उपजे वृक्ष के दुख को बखूबी शब्द दिया है आपने !!!! बहुत बधाई आपको !!!!

Comment by Sarita Bhatia on October 17, 2013 at 6:03pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी पेड़ की मार्मिकता को दर्शाती हुई कथा 

संदेश्तामक ,बहुत बहुत बधाई 

Comment by Abhinav Arun on October 17, 2013 at 2:59pm

अद्भुत... वृक्ष की पीड़ा बखूबी चित्रित हुई है आदरणीय शुभ्रांशु जी ...संसाधनों के सार्थक उपयोग को प्रेरित करती लघुकथा अपने उद्देश्य में सफल है ..बहुत साधुवाद ..बहुत शुभकामनाएँ !!

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