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धर्म अधर्म //कुशवाहा//

धर्म अधर्म

--------------

धर्म अधर्म

देशकाल की धुरी पर

नर्तन करता हुआ

ज्ञानियों / अज्ञानियों

की गोद में

पल पल मचलता

रंग बदलता

कुछ न कुछ कहता है

युग हो कोई

नयी बात नहीं

परोक्ष / अपरोक्ष

दिल के किसी कोने में

रावण रहता है

विष वमन

घायल तन मन

चिंतन  मनन

जन जन छलता है

न कर मन मलिन

न हो तू उदास

रख द्रढ़  विश्वास 

अत्याचारों  की

जब जब  अति होती है

हरी भरी वसुंधरा

पापों से रोती  है

होता कोई अवतार

अधर्म पर धर्म की

विजय होती है

मौलिक//अप्रकाशित//

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

8-1-2013

    

Views: 628

Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 19, 2013 at 2:46pm

रचना ..धर्म अधर्म.. पर आपका स्नेह पा कर अभिभूत हूँ. स्वास्थ्य कारणों से प्रत्येक का अलग अलग आभार व्यक्त न कर कुछ समय तक सामूहिक आभार स्वीकार करें. में आपकी रचनाओं का आनंद तो ले रहा हूँ, पर कुछ कह नही पा रहा हूँ. क्षमा करेंगे. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 18, 2013 at 11:59pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी , 

बहुत सुन्दर सुगठित संयत प्रस्तुति..वाह !

हार्दिक बधाई 

Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:45pm

बहुत सुंदर विचार है खुशवाहा जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 7:52pm

इस सकारात्मक और सहज कविता के लिए हृदय से बधाई आदरणीय प्रदीपजी.
भावों का बहुत ही संयत और सुन्दर विन्यास हुआ है.
वाह वाह !
सादर
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 17, 2013 at 12:15am

आदरणीय प्रदीप कुमार जी, इस सशक्त रचना के लिये दिल से बधाई. कथ्य, शिल्प, भाव सभी कुछ संतुलित, वाह !!!!!!

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 16, 2013 at 10:43pm
दिल के किसी कोने में

रावण रहता है

विष वमन

घायल तन मन

चिंतन मनन

जन जन छलता है

सत्य को उकेरती गतिमान रचना के लिये आदरणीय ापको बधाई
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 16, 2013 at 7:42pm

आदरणीय कुशवाहा सर जी,  वाह खूब सूरत।   धर्म की धुरी जिसके चारो ओर अधर्म फिरता है। सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 16, 2013 at 6:26pm

//धर्म अधर्म

देशकाल की धुरी पर

नर्तन करता हुआ

ज्ञानियों / अज्ञानियों

की गोद में

पल पल मचलता

रंग बदलता

कुछ न कुछ कहता है// वाह बहुत बढ़िया, आदरणीय कुशवाहा सर भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकार करें

Comment by Saarthi Baidyanath on October 16, 2013 at 2:05pm

उत्तम रचना ... कई रंगों को उकेरती, एक पठनीय रचना ! मुबारक !...:)

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 16, 2013 at 1:34pm

आदरणीय कुशवाहा सर जी वाह मन प्रसन्न हो उठा बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति आदरणीय हृदयतल से ढेरों बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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