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सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा (हास्य ग़ज़ल "राज")

१२२२     १२२२      १२२२ १२

बहर---हजज मुसम्मन महजूफ

काफिया ---ना

रदीफ़ ----लगा

सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना   लगा

तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा

 

मिली धोबिन मुझे कल राह में पहने हुए

दुपट्टा पास से देखा मुझे अपना लगा

चुराई पैर की पायल मुझे  कुछ गम नहीं   

बड़े सम्मान से उसका मुझे झुकना लगा

 

चिढ़ाने के लिए  वो दे रहा था गालियाँ

मुझे तो राम का ही नाम सा जपना लगा

 

निकाला जेब से बटुवा किसी ने राह में  

बुरा फिर भीड़ से उसका मुझे पिटना लगा

 

गिराया टांग से मुझको किसी ने दौड़ में

 मुझे वो ख़्वाब मैं या नींद में गिरना लगा

 

दिया धोखा किसी ने राह मैं मुझको कभी

फ़कत दिन चार का मुझको बुरा सपना लगा

 

करूं क्या है बुरी पर ये मिरी आदत सही

भला हर ख़ार का मुझको सदा चुभना लगा   

 

छुपाना “राज” ये मुमकिन नहीं लगता मुझे

सुनाने से कहीं अच्छा मुझे लिखना लगा

************************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 14, 2013 at 7:39pm

आदरणीय अखिलेश जी आपकी इस उत्साह वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक रूप से आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 14, 2013 at 7:37pm

आदरणीय गिरिराज जी आपको ग़ज़ल में ये मेरा हास्य का प्रयोग अच्छा लगा मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार आपका 

Comment by Abhinav Arun on October 14, 2013 at 7:15pm

नए भाव की ताजगी लिए इस ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीया !

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 5:27pm

ऐसी गज़ल पढ़ने को कम ही मिलती है बधाई आ.  राजेश कुमारीजी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 14, 2013 at 5:05pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत बढ़िया हास्य गज़ल की रचना की है आपने , आपको ढेरों बधाई !!!!

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