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गजल: जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती

बह्र: 1222/1222/1222/1222

मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती
तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती


सियासत किस तरह से घुल गई फिरकापरस्ती में
चमन में लीडरों के अब कोई तितली नहीं जाती

ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से
कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको
कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे
सितम से जूझती है पर कहीं दिल्ली नहीं जाती

नया आगाज तेरे साथ करना चाहता हूं पर
जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती

-शकील जमशेदपुरी
—————————————————
*मौलिक एंव अप्रकाशित

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Comment

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 8, 2013 at 3:55pm

वाह,,,वाह,,,ज़नाब,,,,शकील जमशेदपुरी जी ,,,कमाल का लेखन है आपका मुबारकबाद आपको,,,,,,,

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