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सफर में चलते रहना ही हमारी कामयाबी है (गज़ल)

अरकान : १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२

गिरें  तो  फिर  सम्हलना  ही  हमारी  कामयाबी है !

सफर  में  चलते  रहना  ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

नही  ये कामयाबी  है  कि  मंजिल  पा  लिया हमने

सही   राहों  पे  चलना   ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

मुहब्बत   में   तुम्हारी   हार   ही  हरबार पाए, पर

मुहब्बत  तुमसे  करना  ही  हमारी   कामयाबी  है !

 

भले   ही  मौत  आए, पर सहेंगे  अब  नही जालिम

मरे  तो  लड़  के  मरना ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

तुम्हारे प्यार में जो गम, खुशी  हमको  मिली  जानम

गज़ल  में  उसको   भरना  ही  हमारी  कामयाबी है !

 

-पीयूष भारत

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 2:21pm

शुक्रिया, रविकर भाई ! अच्छी कुण्डलिया, आपको भी बधाई !

Comment by रविकर on September 24, 2013 at 2:19pm

बढ़िया गजल-
शुभकामनायें आदरणीय-

भटके राही लक्ष्य बिन, भट के झूठे युद्ध |
आशिक रूठे रूह से, देखूं ढोंग विशुद्ध |


देखूं ढोंग विशुद्ध, लगा सज्जन उकसाने |
बातें नीति विरुद्ध, बुद्ध पर लगा कहाने |


गा मनमाने गीत, दिखा के लटके-झटके |
मान बैठता जीत, जगत में क्यूँकर भटके ||

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 1:22pm

आपको ये गज़ल अच्छी लगी, ये इस गज़ल के प्रति काफी आश्वस्त करता है, आदरणीय अभिनव जी ! बहुत बहुत शुक्रिया !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 1:20pm

शुक्रिया, आ. शशी जी !

Comment by Abhinav Arun on September 24, 2013 at 1:12pm

लाजवाब ग़ज़ल हर शेर उम्दा है पियूष जी बहुत बधाई और शुभकामनायें !!

 

नही  ये कामयाबी  है  कि  मंजिल  पा  लिया हमने

सही   राहों  पे  चलना   ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

                     -- ये ख़याल बनायें रहे कामयाब होंगे !!

Comment by shashi purwar on September 24, 2013 at 10:59am

bahut khoob

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