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१ २  २   १  २२      १ २ २  १ २ २

अभी जो यूँ सपनो में आने लगें हे /

वो अनहोनी बातें बताने लगें हे /

पता उनके सच का कहाँ झूठ का हे,  

जो हर बात पे छटपटाने लगें हे /

चलों नाम लिख दे जरा साथ उन के ,    

यहाँ आते जिन को जमाने लगें हे,/

जो दिन बीत जाये दुबारा ना आये ,

कई राज दिल को लुभाने लगें हे /

यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,

अँधेरों   में  दीये  जलाने  लगें हे /

"मौलिक व  अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on September 11, 2013 at 1:41am

जहाँ ग़ज़ल अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही, टंकण त्रुटियों ने सारा मजा किरकिरा कर दिया ....

भाई जी ... पत्थर में दरार हो तो फर्क नहीं पड़ता ....आईने में बाल भी खटकता है... ग़ज़ल आईना है पत्थर नहीं 

Comment by मोहन बेगोवाल on September 10, 2013 at 11:09pm

सभी अदीबों का मेरी शायरी प्रति आभार प्रगट करने के लिए धन्यवाद 

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 10:10pm

आ0 मोहन जी सुंदर गजल के लिए आपको बधाई ।

Comment by Parveen Malik on September 10, 2013 at 7:11pm
बहुत खूबसूरत गजल ... बधाई !
Comment by vijayashree on September 10, 2013 at 1:13pm

यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,

अँधेरों   में  दीये  जलाने  लगें हे 

सकारात्मक  भाव लिए इन पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई  मोहन बेगोवाल जी 

Comment by मोहन बेगोवाल on September 9, 2013 at 4:36pm

 आदरनीय डाक्टर ललित जी ,

आप जी ने मेरी गजल की इस्लाह की आप का ,बहुत बहुत आभारी हूँ ,आगे से भी मार्गदर्शन करिएगा,मेहरबानी होगी //  प्रबंधकोण  का भी शुक्रगुजार , जिन्होंने मेरी रचना का अनुमोदन कर अपनी खामियों को समझने का मौका प्रदान किया 


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 10:40am
आदरणीय मोहन भाई , बातें अच्छी हैं गज़ल मे , बधाई !! , आदरणीय ललित जी के निर्देशानुसार सुधार कर लीजिये !!
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 9, 2013 at 6:07am

122 122 122 122 
अभी जो ये सपनो में आने लगें हैं 
वो अनहोनी बातें बताने लगें हैं

लगे ना कहीं अब अंदाज सच्च झूठ में, --- 'ना' शब्दकोष में कोई शब्द नहीं है- पता उनके सच का, कहाँ झूठ का है 
जो हर बात पे छटपटाने लगें हे

चलों नाम लिख दे जरा साथ उन के , 
यहाँ आते जिन को जमाने लगें हे,

जो दिन बीत जाये दुबारा ना आये ,
तभी राहों पे फूल उगाने लगें हे ---------------बहर से बाहर हो रहा है ----------कई राज दिल को लुभाने लगे है

यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,
अंधेरों में दीये जलाने लगें हे /

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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