For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसे समय में
जब आदमी अपनी पहचान खो रहा है
बाजार हो रहा है हावी
और आदमी बिक रहा है
कैसी बच सकेगी आदमियत
यह सोचना जरूरी है।

टीवी पर दिखती रंग बिरंगी तस्वीरें
हकीकत नहीं है
और न ही पेज 3 पर के चेहरे
आज भी बच्चे
दो जून की रोटी के लिये
चुनते हैं कचरे
और करते हैं बूट पालिष
अरमानों को संजोये
हजारों लडकियां
पहुंच जाती हैं देह मंडी के बाजार में
और यही हकीकत है।

पूरी दुनिया की भी यही तस्वीर है
जब बाजार हो रहा है हावी
तो इनकी
किसी को भी फिक्र नहीं है
बावजूद इसके
जब हमें बचना है
आदमियत को बचाना है
तो इसपर सोचना जरूरी है।

Views: 463

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 1:40pm
सच कहा सोचना जरूरी है..और उम्मीद है  ये जल्द ही होगा
Comment by Neelam Upadhyaya on December 28, 2010 at 10:03am

Hamare aaj ke samaj ke katu yatharth yahi hai.  Bahut hi satik rachna.

Comment by prabhat kumar roy on December 28, 2010 at 8:16am
It is vary good poem written by sanjeev sameer, full of passion & emotion. congrats!
Comment by Rash Bihari Ravi on December 27, 2010 at 3:10pm
namaskar sir khubsurat rachna ke liye dhanyabad
Comment by sanjiv verma 'salil' on December 26, 2010 at 9:32pm
कटु यथार्थ... शोचनीय... नेताओं और अफसरों ने देश को दुनिया की सबसे बड़ी
मंदी बना दिया है और इसे वे अपनी सबसे सफलता मानते हैं. बिक तो दोनों रहे
हैं स्त्री भी और पुरुष भी. मन गौड और तन प्रमुख हो गया है.
Comment by Lata R.Ojha on December 26, 2010 at 4:11pm
sach kahaa aapne ,baazaarvaad insaaniyat pe haavi ho raha hai har oar ..aur is gambheer prashn ko bahut achche se aapne  uthaaya hai.badhai..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 26, 2010 at 2:50pm

वाह वाह संजीव जी, यक़ीनन सोचना जरूरी है, आज कल की परिस्थितियों का सटीक चित्रण करती एक बेहतरीन काव्यकृति |बाजारवाद और पूजीवाद हावी है हमारे समाज पर, लडकिया भी छडिक सफलता के लिये सब कुछ दाव पर लगाने को तैयार होती है जिसका परिणति है दैहिक शोषण |

बहरहाल इस शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार कीजिये |

Comment by Manish Kumar on December 26, 2010 at 2:22pm
gr8 sanjeev ji , nice work, seriously sochna jaruri hai.,,,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service