पाँव मेरे वहीं पर ठिठक से गए
जिस जगह तुम गए थे मुझे छोड़कर
मैं वहीं पर खड़ा ये ही देखा किया
कैसे जाता है कोई मुँह मोड़कर
कितने वादे किए थे तुमने मगर
इन कलियों को खिलना कहाँ था लिखा
इन शाखों पर चिड़िया चहकती नहीं
कब पेड़ों से पतझड़ हुआ था विदा
अब बहारें उधर से गुजरती नहीं
जो राहें तुम तन्हा गए छोड़कर
अश्क तो आँख से अब छलकते नहीं
सब घटा बन तुम्हारी तरफ हैं गए
चाँदनी मेरी छत पर ठहरती नहीं
ख्वाब भी छोड़ मुझको चले हैं गए
इन साँसों को अब भी प्रतीक्षा तेरी
कैसे रखूँ मैं इनको संग जोड़कर
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बृजेश जी आपकी रचनाएँ स्वयम ही सब कुछ कह जाती है , पढ़ने वाला बस निशब्द ही रह जाता है । सुंदर भाव । बधाई स्वीकारें ।
भावों से भरा है,
रचना खरा है ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नीरजजी
भाव विभ्रोर रचना
अश्क तो आँख से अब छलकते नहीं
सब घटा बन तुम्हारी तरफ हैं गए
चाँदनी मेरी छत पर ठहरती नहीं
ख्वाब भी छोड़ मुझको चले हैं गए
इन साँसों को अब भी प्रतीक्षा तेरी
कैसे रखूँ मैं इनको संग जोड़कर////
बहुत ही सुन्दर भावों से सजी एक बहुत ही सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको आदरणीय भाई ब्रिजेश जी //सादर
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