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पाँव मेरे वहीं पर ठिठक से गए

जिस जगह तुम गए थे मुझे छोड़कर

मैं वहीं पर खड़ा ये ही देखा किया

कैसे जाता है कोई मुँह मोड़कर

 

कितने वादे किए थे तुमने मगर

इन कलियों को खिलना कहाँ था लिखा

इन शाखों पर चिड़िया चहकती नहीं

कब पेड़ों से पतझड़ हुआ था विदा

अब बहारें उधर से गुजरती नहीं

जो राहें तुम तन्हा गए छोड़कर

 

अश्क तो आँख से अब छलकते नहीं

सब घटा बन तुम्हारी तरफ हैं गए

चाँदनी मेरी छत पर ठहरती नहीं

ख्वाब भी छोड़ मुझको चले हैं गए

इन साँसों को अब भी प्रतीक्षा तेरी

कैसे रखूँ मैं इनको संग जोड़कर

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 11:44pm

आदरणीय सूर्य बाली जी बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 11:43pm

आदरणीय भ्रमर जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 11:42pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 11:34pm

बेहद उम्दा रचना ....हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on September 4, 2013 at 11:28pm

sundar rachana 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 4, 2013 at 11:26pm

अश्क तो आँख से अब छलकते नहीं

सब घटा बन तुम्हारी तरफ हैं गए

चाँदनी मेरी छत पर ठहरती नहीं

ख्वाब भी छोड़ मुझको चले हैं गए

प्रिय नीरज जी अद्भुत ..प्रेम छलक पड़ा ...विरह के बादल तैर गए
बधाई
भ्रमर ५

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 11:15pm

बहुत सुन्दर रचना .. बहुत बहुत बधाई आ० बृजेश जी

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 10:55pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 10:54pm

आदरणीय रमेश जी बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 10:53pm

आदरणीय आशीष जी बहुत आभार!

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