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पांच दोहे

 

खुद के अन्दर झाँक के, पढ़  ले तू आलेख

अपने ऐसे हाल का,  खुद  खींचा  आरेख

 

बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास

भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास

 

पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय

रे मन चल लग ठौर से,तू काहे पछुवाय

 

अन्धियारी में जुँ रहे, दीपक ही की खोज

अपने अन्दर खोजना, अपना सुख तू रोज   

 

बंद आँख कर देखिये,त्रितिय आँख की ओर

ध्यान सरलता से करें,तनिक न दीजे जोर

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ashish Srivastava on September 2, 2013 at 7:45pm

सार्थक प्रयास , 

दोहा लिखना है नहीं , सरल बहुत ही काम 

सुन्दर दोहे है कहे  , भंडारी है नाम 

निम्न दोहा बहुत पसंद आया 

अन्धियारी में जुँ रहे, दीपक ही की खोज

अपने अन्दर खोजना, अपना सुख तू रोज   

Comment by ram shiromani pathak on September 2, 2013 at 7:35pm

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय गिरिराज जी //हार्दिक बधाई 

खुद के अन्दर झाँक के, पढ़  ले तू आलेख

अपने ऐसे हाल का,  खुद  खींचा  आरेख////यहाँ पहली दूसरी पंक्ति का सामंजस्य स्पष्ट नहीं लगा मुझे // 

 

बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास

भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास/////इसे और भी अच्छे तरीके से कहा जा सकता है 

 

पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय

रे मन चल लग ठौर से,तू काहे पछुवाय/////यह  शब्द पहली बार सुन रहा हूँ आदरणीय 

 यह मेरा व्यक्तिगत विचार है आदरणीय अन्यथा ना लीजियेगा ////


सादर

 

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