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लघुकथा - अनुष्ठान (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')

बहुत उपचार के बाद भी चित्रा की गोद सूनी थी |पूरा परिवार चिंतित रहता था |चित्रा यज्ञं हवन के लिए पति राजेश पर दवाब देती तो नोक-झोक हो जाती थी |राजेश को पूजा पाठ पर विश्वास नहीं था | काफी मेहनत के बाद चित्रा की माँ अपने भगवान् तुल्य गुरूजी मायाराम बाबू से मिली |गुरूजी चित्रा के कुंडली में संतान के घर में अनिष्टकारी ग्रह देख एक ग्रह शांति का ख़ास अनुष्ठान कराने के लिए उनके घर आने को राजी हो गए |चित्रा भी उत्साहित हो गुरूजी की आवभगत की सारी तैयारियाँ कर ली थी | गुरूजी और चित्रा को पूजा करते करते रात हो गयी, तभी चित्रा रोते हुए माँ से लिपट कर कहने लगी, 'मुझे माँ नहीं बनना .....

शुभ्रा शर्मा 'शुभ '

मौलिक और अप्रकाशित

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 2, 2013 at 1:29pm

तथाकथित गुरुयों की करतूतों को बेनकाब करती हुई सुंदर लघुकथा कही है आद० शुभ्रा शर्मा जी. कहानी के अंत में किलर पञ्च की कमी लग रही है, बहरहाल मेरी दिली बधाई स्वीकार करें.  

Comment by shubhra sharma on September 2, 2013 at 12:35pm
निवेदन है कि मेरी लघुकथा -अनुष्ठान एक काल्पनिक कथा है कथ्य या नाम किसी से मिलते हों तो ये एक महज संयोग है

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