For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हे धर्मराज!.............डॉ० प्राची

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

लोभ-मोह के छद्माकर्षण, प्रज्ञा से नित कर विश्लेषण,

इप्सा तर्पण हो प्रतिपूरित, मन में तृष्णा निःशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

कर्तव्यों का प्रतिपालन कर,निष्काम कर्म प्रतिपादन कर,

फल से हो सर्वस मुक्त मनस,बस नेह हृदय मधु-शेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

निवर्ण–सुवर्ण, अभिजात-मलिन, परिजन-परजन, शुभदिन दुर्दिन,

निःस्पर्श रहे हर आडम्बर, मन अंतर ऊर्जित त्वेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

हे धर्म-धरण! हे प्राण-हरण! सत् तत्व ज्ञान, नत शीश शरण,

श्वाँस-प्रश्वाँस तुम्हे अर्पित, निशप्रात दिवस दिनशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 1123

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 3:02pm

आदरणीय संजय मिश्रा जी 

रचना पर आपके उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए हृदय से आभारी हूँ..

मुझे तो लगा था कि यम के आमंत्रण को स्वीकार करती यह अभिव्यक्ति शायद सुधि पाठक जन पसंद नहीं करेंगे.. लेकिन इस सृजन को पसंद कर विचारों व सम्प्रेषण के प्रति लेखन को आश्वस्त करती आपकी टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद प्रेषित करती हूँ .

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 3:00pm

रचना का  कथ्य आपको प्रेरणा दायक लगा आ० आदित्य कुमार जी तो लेखन सार्थक हुआ ही समझूँ.

हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 2:57pm

आदरणीय विजय निकोरे जी 
रचना पर आपके अनुमोदन के लिए धन्यवाद!

Comment by vijay nikore on September 1, 2013 at 2:50pm

 

 

यह रचना हर मानव के उत्थान के लिए प्रवचनीय भावनाओं का उत्तम संप्रेषण है ...

 

भगवान से जो भी मिले, हम उसे नत-मस्तक स्वीकार करें ...

"प्राणार्पण हुतशेष रहे" ... आहुति के रूप में इससे पूर्ण समर्पण और हो भी क्या सकता है !

 

हमारी बुद्धि हमें लोभ-मोह छल-कपट, भेद-भाव से दूर रखे, और भगवान के दर्शनाभिलाषी

बन कर हमारे मन में भगवान के अतिरिक्त कोई और तृष्णा न रहे ... हम फल से असंपृक्त रहें ...

ईश्वर से बस यही अनुनयी विनय  रहे !

 

 विजय

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on September 1, 2013 at 2:47pm

वाह...!!! अंतिम पद तो अद्भुत है...

आदरणीया डा प्राची सिंह जी इस सुंदर सृजन के लिए सादर बधाइयाँ स्वीकारें....

Comment by Aditya Kumar on September 1, 2013 at 2:37pm

हर प्रकार से प्रेरणा दायक। धन्यवाद ऐसी महान रचना के लिये. आदरणीया  Dr.Prachi Singh जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:39am

अभिव्यक्ति के सार पर आपके सराहनात्मक अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद आ० गिरिराज भंडारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:38am

आदरणीय अभिनव अरुण जी 

प्रार्थना की भाव भूमि और कथ्य सार पर आपका अनुमोदन आश्वस्ति का कारण है.

इस संबल प्रदान करते सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:36am

आदरणीया वन्दना जी 

प्रार्थना से भावात्मक एकाकार स्थापित कर इसमें शामिल हो स्वर मिलाने की चेष्टा के लिए आपका हृदय से धन्यवाद 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:32am

आदरणीया विजयाश्री जी 

अभिव्यक्ति के शब्द प्रवाह पर आपकी सराहना मिली, लेखन को संबल मिला है

आपका सादर आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
32 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
33 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
11 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service