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क्षमा दान ( लघु कथा )

रात के बारह बज रहे थे , रोहित नशे हालत मे घर मे दाखिल हुआ उसकी भी पत्नी साथ मे ही थी । पिता दुर्गा प्रसाद कडक कर बोले – “ ये क्या तरीका है घर मे आने का , कैसे बाप हो तुम जिसको बच्चों का भी ख्याल नहीं । और ये तुम्हारी पत्नी , इसको भी कोई कष्ट नहीं ।”  रोहित तमतमा उठा न जाने क्या क्या उनको कह डाला । वे बेटे के पलटवार के लिए तैयार न थे वह भी बहू और बच्चों के सामने । सिर झुकाये सुनते रहे कुछ बोल नहीं पाये । एक वाक्य ही उन्होने अपनी पत्नी से कहा ,” हमारी परवरिश मे खोट है । ”  वे कमरे मे जाकर चुपचाप लेट गए । सुबह जब उनकी पत्नी की आँख खुली तो उन्होने देखा कि दुर्गा प्रसाद जी खुली आंखो से एक टक छत को निहार रहे है।  वे बोलते हुये उठीं – “ जवान खून है आप भी नाहक ही भिड़ गए उससे वह भी उसके बीवी बच्चों के सामने । अब चलिये उठिए , मै चाय बनती हूँ आप फ्रेश होकर आइए । “ जब वे वॉश रूम से बाहर आई तब तक दुर्गा प्रसाद जी वैसे ही लेटे हुये थे । उन्होने पास जाकर ज़ोर से हिलाया – “अब उठिए भी”    किन्तु यह क्या वे तो पत्थर हो गए थे । एकदम शांत कोई भाव नहीं किसी कोई शिकायत ही नहीं । वे तो महाप्रयाण पर चल दिये थे । बेटा बहू अब तक सोये थे । माँ की चीख सुनकर बाहर आए, माँ को पिता के शरीर से लिपट कर बिलखता देख रोहित रो पड़ा – “पिता जी इतनी बड़ी सजा दे डाली , मै तो अपनी गलती के लिए आपसे क्षमा मांगना  चाहता था ।“ माँ बिलखते हुये बोली – “ सजा कहाँ रे ! वे तो तुझे जीवन भर के लिए क्षमा दान दे गए।”

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

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Comment by annapurna bajpai on September 1, 2013 at 12:05am

आपका हार्दिक आभार आ0 विनीता जी । 

Comment by annapurna bajpai on September 1, 2013 at 12:04am

आपका बहुत आभार आ0 आदित्य जी , कोई एक भी बंदा यदि मेरी कथा से लाभान्वित होता है मुझे बड़ी खुशी होगी । 

Comment by Vinita Shukla on August 31, 2013 at 8:26pm

अत्यंत मार्मिक...सीधे दिल पर वार करने वाली. बधाई अन्नपूर्णा जी.

Comment by Aditya Kumar on August 31, 2013 at 8:20pm

बहुत अच्छा। । हम युवाओं के लिए अति शिक्षा प्रद। …। हृदयस्पर्शी है लघुकथा। । फेसबुक पर  ले जा रहा हूँ आप के नाम से वहां युवा वर्ग को शायद शिक्षा दे ! 

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 7:01pm

आदरणीय सौरभ जी आपकी लघु प्रतिक्रिया ने बहुत कुछ कह दिया । आपका हार्दिक आभार । सादर । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2013 at 3:39pm

ओऽऽ ह.. . !

सादर

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 3:39pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार । माता पिता होते ही ऐसे है उन्हे अपने बच्चे कैसे भी हो प्यारे ही होते है । 

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 3:37pm

आदरणीय नीरज जी आपका आभार । 

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 3:36pm

अदरणीय शुभ्रांशु पांडे जी आपके कथन से सहमत हूँ । आपका हार्दिक आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 2:08pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

//हमारी परवरिश मे खोट है// यह विवश एहसास ही किसी माता पिता के लिए कितना कष्टकर होता होगा..

और वृद्धावस्था में यह सदमा जो प्राण लेले.. 

//वे तो तुझे जीवन भर के लिए क्षमा दान दे गए//......... इस भाव में कितनी सच्चाई है..कि मृत्यु शैया पर भी पिता कभी संतान को सज़ा नहीं दे सकता.. वो तो क्षमादान दे गए , जैसे हलाहल स्वयं पी कर पुत्रों को अमृत दिया हो..

बहुत संवेदनशील लघुकथा..

हार्दिक शुभकामनाएँ 

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