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ग़ज़ल: मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है

बहर: हज़ज़ मुसम्मन सालिम

१२२२, १२२२, १२२२, १२२२

मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है,

अधूरी प्रेम की पूजा कठिन दिल की तपस्या है,

लगे जो ठीक तुझको कर समर्पित है तुझे जीवन,

नमन तुझको हमेशा दिल तेरी करता नमस्या है,

अमावश सी अँधेरी रात चाहत के घरौंदे में,

बिछी आँगन में काँटों से बनी कोई पयस्या है,

उठा तूफान भीषण टूटके बिजली गिरी दिल पर,

भरा सागर दुखों का है बही गम की रहस्या है,

हुई है वर्फबारी गर्म यादों पर निगाहों की,

लगी दीवार पे दिल की हुई कच्ची वयस्या है.

शब्दार्थ

नमस्या : पूजा, पयस्या : घास

रहस्या : नदी, वयस्या : ईंट

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 12:47pm

हार्दिक आभार आदरणीय रमेश सर जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2013 at 12:18pm
अरुण भाई हिन्दी की इतनी सशक्त गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई !!
Comment by रमेश कुमार चौहान on August 26, 2013 at 10:44am

शब्दों के ज़ादूगरी से भरी प्यारी रचना । बधाई बधाई

कृपया ध्यान दे...

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