For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अकथ्य व्यथा

 

अरक्षित अंतरित भावनाओं को अगोरती,

क्षुब्ध   अनासक्त   अनुभवों  से  अनुबध्द,

फूलों   के   हार-सी  सुकुमार

मेरी कविता, तुम इतनी उदास क्यूँ हो ?

 

पँक्ति-पँक्ति  में   संतप्त,  कुछ  टटोलती,

विग्रहित   शिशु-सी   रुआँसी,

बगल में ज्यों टूटे खिलोने-से

किसी  पुराने रिश्ते को थामे,

मेरे   क्षत-विक्षत  शब्दों में  तुम 

इतनी  जागती  रातों  में  क्या  ढूँढती हो ?

 

अथाह सागर के दूरतम छोर तक जा कर

प्यासी,  तुम   खाली   हाथ  लौट  आती  हो,

कुछ   कहते-कहते  अकस्मात, भावशून्य,

नि:शब्द हो जाती हो, और उसी क्षण

अरगनी पर लटक रहे गीले कपड़े-सी

तुम्हारी असह पीड़ा बूँद-बूँद   टपकती

मुझसे सही नहीं जाती, और मैं ....

तुम्हारे   संग इन शब्दों मे रो देता हूँ ।

 

तुम्हारी  अकथ्य  व्यथा  में  निहित  पीड़ा

निरन्तर निचुड़ने के बाद भी

बहुत बाकी रह जाती है ।

विरहिणी  के  वियोग-सी  तुम्हारी  पुकार

मैं सुनता हूँ असहाय, छलनी हो जाता हूँ,

अनिर्णीत शब्द, अभिव्यक्ति विहीन

निढाल गिर जाते हैं

और मैं उठा कर उनको बटोर नहीं पाता ।

 

हवाओं की अदम्य गति

उड़ती रेत की तरह

गिरे अबोध शब्दों को कहाँ से कहाँ

पटक-पटक आती है

और तुम तड़पती हो उस माँ की तरह

जो जलती आग की लपटों में एक संग

कितने बच्चों को खो देती है,

और मैं इस पर भी मूर्ख-सा खड़ा,स्तब्ध

पूछ बैठता हूँ तुमसे नादान-सा ...

"मेरी कविता, तुम इतनी उदास क्यूँ हो ? "

--------

-- विजय निकोर                                                          

(मौलिक व अप्रकाशित)            

 

                   

Views: 903

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 1, 2013 at 3:40pm

आदरणीया मंजरी जी:

 

रचना की सराहना के लिए धन्यवाद और हार्दिक आभार।

 

सादर,

वि्जय निकोर

Comment by vijay nikore on September 1, 2013 at 3:37pm

आदरणीया विनीता जी:

 

//बहुत ही सशक्त, अद्भुत तथा सुंदर अभिव्यक्ति.//

इतनी सारी सराहना के लिए आभारी हूँ, आदरणीया।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 1, 2013 at 3:34pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 1, 2013 at 3:31pm

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया प्राची जी।

Comment by vijay nikore on September 1, 2013 at 3:30pm

आदरणीय आशीष जी:

 

//उम्दा पंक्तियाँ और बेहतरीन रचना आदरणीय |//

सराहना के लिए धन्यवाद, आदरणीय।

 

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 30, 2013 at 7:47am

आदरणीय बृजेश भाई:

 

//मन की व्यथा, कविता का मर्म, को इससे बेहतर क्या शब्द मिल सकते हैं। निःशब्द कर दिया!//

 

आपका आभार शत-शत । माँ शारदा की प्रेरणा से कुछ लिख लेता हूँ।

स्नेह बनाए रखें।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 30, 2013 at 7:38am

आदरणीय अरून शर्मा जी:

 

//अहा अहा !!!! निःशब्द कर दिया आपने आदरणीय कथ्य शिल्प भाव बेहद गहन हैं कई बार पढ़ता रहा, बेहद असरदार प्रस्तुति आदरणीय हृदयतल से भूरि भूरि बधाई स्वीकारें.//

 

आपसे इतना मान मिलने पर मैं कुछ संकोच में हूँ... कि भविष्य में अपेक्षा पर पूरा उतर सकूंगा कि नहीं।

हाँ कोशिश तो जारी रहेगी। मित्र, आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 2:13pm

वाह ! जवाब नहीं.. .

बहुत खूब, आदरणीय.

Comment by vijay nikore on August 26, 2013 at 10:37am

आदरणीय राज नवादवि जी:

इस रचना को "like" करने के लिए आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 26, 2013 at 10:32am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी:

 

// बहुत बढ़िया भाव पूर्ण कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई//

कविता के भावों के अनुमोदन हेतु धन्यवाद और आभार, आदरणीया।

 

सादर,

विजय निकोर

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service