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दर्द को क्यों आज मेरी याद आई है ....

दर्द को क्यों आज मेरी याद आई है
हो रही मद्धम सफ़ों की रोशनाई है।

मुद्दत हुई जो तड़प हम भूल बैठे थे
वो ग़ज़ल फिरआज दिल ने गुनगुनाई है ?

आजमाता ही रहा मौला मुझे हर वक़्त
खूब किस्मत है गज़ब की आशनाई है।

माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के
तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है।

मेरे सूने से मकाँ में मेहमान बन के आ
बियाबाँ में बहारों की बज़्म सजाई है ।

दरिया के किनारों सा चलता रहा सफ़र
इस ओर ख्वाहिशें हैं उस ओर खुदाई है।

-ललित मोहन पन्त

12. 52 दोपहर
20 .08 .2013

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 4:02am

माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के
तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है।..........वाह !बहुत शानदार शेर

आदरणीय ललित मोहन जी, सुंदर गजल पर बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 21, 2013 at 12:51am

माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के 
तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है। 

अद्भुत सोच ...सुन्दर रचना

आप सभी मित्र मण्डली को रक्षा बंधन के पावन पर्व पर ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर

Comment by dr lalit mohan pant on August 21, 2013 at 12:15am

गिरिराज भंडारी जी एवं Vinita Shukla जी  आपके प्रोत्साहन का आभार मानता हूँ  …. 

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:53pm

'माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के
तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है।'सुंदर अलफ़ाजों से सजी, खूबसूरत गजल. बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2013 at 7:34pm

ललित भाई , बढ़िया गज़ल हुई , ये शे र पसन्द आये -

आजमाता ही रहा मौला मुझे हर वक़्त
खूब किस्मत है गज़ब की आशनाई है।

माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के
तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है। --------- बधाई !!!!

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