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ग़ज़ल - मैं था टूटा बिखरता रहा रात भर

ग़ज़ल –

 

गिरते गिरते संभलता रहा रात भर ,

मैं था टूटा बिखरता रहा रात भर |

 

उसके रुखसार का चाँद दामन में था ,

चांदनी में निखरता रहा रात भर |

 

मुझको मंजिल नहीं बस सफ़र चाहिए ,

दो कदम चल ठहरता रहा रात भर |

 

गो कि पलकें उठीं आईना हो गयीं ,

आईनों में संवरता रहा रात भर |

 

था हकीकत या सपना यही सोचकर ,

अपनी ऊँगली कुतरता रहा रात भर |

 

अर्श तक मैं चढ़ा उंगलियाँ थामकर ,

सांस रोके उतरता रहा रात भर |

 

भोर होने ने मुझमें यकीं भर दिया ,

हादसों से गुज़रता रहा रात भर |

 

शेर   तारे    ग़ज़ल चांदनी रात थी ,

मन का शायर मचलता रहा रात भर |

 

                 - अभिनव अरुण 

          (पुरानी डायरी से - १८०८२०१३ )

      * सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित - अरुण  

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 11:05am

ओबीओ मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार.. ?!! ...   ;-)))))

हाँ, यहाँ से ठुक-पिट कर वहीं.. . शायद.. .

:-)))))))))

Comment by Abhinav Arun on August 27, 2013 at 7:07am

प्रणाम श्री ..बड़े कारखाने में भेजा है ..शायद खारिज हो जाए या सुधर जाए ..शुरुआत का प्रोडक्शन है ..पर ये एक्सक्यूज नहीं मानता हूँ ..मताए कूचा ओ बाज़ार में सब ठीक ठाक ठुका-पिता होना ही चाहिए ..वज़न लिखने वाली बात से सहमत हूँ ..अमल होगा !! सादर प्रणाम के साथ - अभिनव 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 5:03pm

पेटी की चाभी नहीं हेरायी.. आय-हाय !  यह कम बडी बात नहीं है. :-))))

काफ़िया निर्धारण को पुनः देख लीजियेगा, भाईजी.

ग़ज़ल के अशार सुभानअल्लाह ! पलकों को खूब आईना बनाया है. वाह वाह.. .

इस मंच पर हम मिसरों के वज़्न लिख देने की परंपरा विकसित करें. यथा, २१२२१२२१२२१२

शुभ-शुभ

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 26, 2013 at 7:18am
Bahut khoob..Abhinav ji
Comment by Abhinav Arun on August 25, 2013 at 7:16pm

ग़ज़ल आपको पसंद आई बहुत शुक्रिया आदरणीया मंजरी जी , आपकी सराहना मेरे लिए महत्वपूर्ण है !! 

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 4:35pm

   प्यारी सी ओस से नहाई हुई सी गज़ल .  बधाईयां 

   

गो कि पलकें उठीं आईना हो गयीं ,

आईनों में संवरता रहा रात भर |  

शेर   तारे    ग़ज़ल चांदनी रात थी ,

मन का शायर मचलता रहा रात भर |

   

Comment by Abhinav Arun on August 22, 2013 at 7:14pm

परम आदरणीय आपके आशीष पाकर धन्य हुआ बहुत आभार आप्प्का !!

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 6:42am

बहुत ही खूबसूरत अश’आर हैं।

बधाई, आदरणीय अभिनव जी।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:15am

आ. डॉ प्राची जी ! इधर बारह -पंद्रह साल से लिखी ग़ज़लों की मरम्मत का काम चल रहा है .. कुछ पढाई के दिनों की शुरुआती ग़ज़लें हैं ,, उन्ही में से एक - दो इधर पोस्ट की हैं ... आपको पसंद आई शेयर करना सार्थक रहा | ...दौरे हाज़िर ने ऐसे मंज़र दिखाए की बस अब सियासी सामाजिक विषयों पर लिखना ज्यादा ज़रूरी और समीचीन प्रतीत होता है |

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:11am

शुक्रिया आ. शुभ्रा जी !

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