For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साहित्य के नाम-वरों से बचना जरूरी

मै क्या लिखूं ,ये कैसे लिखूं और वो कितना लिखूं ,क्या शुद्ध है और परिष्कृत है और क्या अस्वीकार्य है? ये वरिष्ठ साहित्यकारों की जमात  नहीं मेरे समझने वाले पाठक तय करेंगे तो मुझे खुशी होगी और मेरा सृजन सफल होगा ! मुझे किसी वरिष्ठ पर कोई विश्वास नहीं,हो सकता है वो अपनी आलोचनाओं से मेरी ठीक-ठाक रचना का कबाडा कर दे ! मुझे अपने से जूनियर और अपने समकालीन मित्र से अपनी सृजन पर समीक्षा लिखवाना अच्छा लगता है और इससे मुझे और लिखने का हौसला मिलता है ! मुझे नहीं लगता कि आपके द्वारा सृजित सामग्री को किन्ही नाम-वरों की आलोचना की जरुरत है, सिवाय मंचों से चाशनी में डुबोए शब्द सुनने के ! मै दुकान लिखूं या दूकान लिखूं ये परम्परा नहीं बल्कि मेरा पाठक तय करेगा ! अगर मेरा पाठक शुद्ध दूकान की बजाय आधुनिक दुकान को लेकर ज्यादा सहज है तो मुझे दूकान को कूड़े में डालकर दुकान लिखने में कोई दिक्क्त नहीं ! साहित्य एक प्रयोगशाला है और यहाँ सब आइंस्टीन हैं ! अत: यहाँ किसी आर्कमिडिज की अलग पहचान नहीं ! युवाओं से अपील है कि अपना लिखो और अपनी समझ का लिखो ! हो सके तो दूसरों की सुन लो,ना समझ में आये तो छोड़ दो ! बस इतना याद रखो कि ये महावीर प्रसाद द्विवेदी(विशेषण)  के वंशज अगर गलती से भी भी उस फक्कड कबीर के दौर में होते तो उनकी कालजयी(आज की तब की नहीं ) रचनाओं का क्या बुरा हाल किये होते ! अवसर की लड़ाई है,लिखो और खूब लिखो ! यहाँ कोई वरिष्ठ नहीं कोई कनिष्ठ नहीं !!

नोट : इन पंक्तियों से आपको असहमति हो तो बीमार ना होइए मौसम खराब चल रहा है ! आप अपना लिखिए और अगले को अपना लिखने दीजिए ! आप भी अच्छे हैं वो भी अच्छा है ! सों, नो इंटरफियारेंस प्लीज :)

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 2336

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on August 11, 2013 at 7:04pm

आपकी चर्चा-रचना (क्या इसे बतकूचन कहना अधिक उपयुक्त नहीं होगा?) पर मुझे एक कहानी याद आ रही है........

बिरबल से कोई गलती हो गयी, जिसपर अकबर ने उन पर आर्थिक जुर्माना लगा दिया, लेकिन जज निर्धारित करने की छूट उन्हे देदी.  बिरबल ने दो भिखमंगों को अपना जज बनाया. बेचारे वे भिखमंगे, अपने हिसाब से एक मुट्ठी चावल का ही जुर्माना लग सके.... अब जज की औकात ही इतनी थी.......

क्या भाई साहब, आप अपने जज भी खुद चुनना चाहते हैं ?

अगर सामान बनाया है तो उसे दुकान/दूकान पर ग्राहकों द्वारा उसे चुनने और नकारने के अधिकार से रोक सकते हैं क्या ? अगर ऎसा है तो अपना सामान सार्वजनिक जगह से हटा कर अपने घर में रखिये.. और खुद ही उसका आनन्द लें.....  

फ़िल्म बनाइये और 25 सप्ताह तक खुद ही देख कर उसकी सिलवर जुबली मनाइये.....मना किसने किया है?

भाई साहब, पाठक जानकार होता है, सही है, लेकिन क्या सारे पाठक इतने जानकार होते हैं?

एक कहावत है... एक ने सावन में जन्म लिया और भादो में बाढ़ आयी, देख कर बोला कि ऎसी बाढ़ उसने आज तक देखी ही नहीं...  तो क्या आप उसी सावन में पैदा हुये को ही पाठक का तगमा देने की पैरवी कर रहे हैं ? यदि कोई पाठक आपसे जानकार हुआ और उसने कुछ सुझा दिया तो उसपर आप नाम्-वर (ये हाइफ़न क्यों भाई?) होने का तोहमत लगा देंगे ?.....

मेरे हिसाब से किसी रचना को पाठक की नहीं जागरुक पाठक की जरुरत होनी चाहिये जो रचना कर्म को आँक सके और उसमें सकारात्मक सुधार ला सके. ऐसे जागरुक पाठकों से भागिये मत. वर्ना लिखने को आज भी ट्रको के पीछे. आशीर्वाद के बदले आर्शिवाद लिखा नजर आयेगा. क्या ऐसा लिखने वाला भी एक लेखक नहीं होता ?....

सादर..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 11, 2013 at 5:50pm

आ0 शिवानन्द भाई जी, सादर प्रणाम! वाह! गजब का विचार! परन्तु भाई जी! यह संसार, सत्य और असत्य, दैव-दैत्य, जड़-प्रकृति, अच्छाई-बुराई, आत्मा-परमात्मा और सबसे अन्त में आपकी बात सराहना-समालोचना इन द्विभावों से ही चलायमान है। हीरो-खलनायक, रात दिन आदि...आप स्वयं समझ लीजिए कि यह बेहतरी है क्या चीज? मैं तो बस इतना ही कहूंगा कि // निन्दक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय// । सबसे अन्त में गुरूजी की बात...शुभ..शुभ...! सादर,

Comment by बृजेश नीरज on August 11, 2013 at 4:46pm

बरसात के मौसम में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। जरा सी लापरवाही बीमारी को न्योता दे देती है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Mamta gupta and Euphonic Amit are now friends
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"आ. भाई सत्यनारायण जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Wednesday
Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
Tuesday
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service