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तुम स्त्री हो ...

सावधान रहो

सतर्क रहो

किस किस से

कब कब

कहाँ कहाँ

हमेशा रहो

हरदम रहो

जागते हुए भी

सोते हुए भी

क्या कहा ?

ख्वाब देखती हो

किसने कहा था

बंद करो

कल्पना की कूची से

आसमान में रंग भरना

उड़ना चाहती हो ?

क़तर डालो पंखो को

अभी के अभी

ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो

अरे तुम तो खिलखिलाती भी हो

बंद करो आँखों में

काजल भरना और

हिरणी सी कुलाचे भर

भवरों संग गुंजन करना

यही तो दोष तुम्हारा  है

शोक गीत गाओ

भूल गयी

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ना ही  देखती है

देश धर्म औ जात

बस सूंघती है

मादा गंध

 

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by MAHIMA SHREE on August 5, 2013 at 10:39pm

आदरणीय अनंत जी .. आपका ह्रदय तल से आभार .. आपने अपना बहुमूल्य समय दिया .सहयोग बनाये रखे

Comment by Anil chaudhary "sameer" on August 5, 2013 at 10:32pm

आदरणीय महिमा जी, बहुत दिनों के बाद ऐसी कविता पढने को मिली जिसमे नारी जीवन का  कटु सत्य स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है!

कविता के लिए आपको बधाई दूं, या नारी जीवन की  व्यथा पर खेद व्यक्त करू, समझ नहीं पा रहा, कटु सत्य है आपकी कविता में

Comment by MAHIMA SHREE on August 5, 2013 at 10:32pm

आदरणीय अभिनव जी .. आपका हार्दिक आभार .. आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों ने रचना कर्म को मान दिया और लेखन को सार्थकता ... स्नेह बनाये रखे .. सादर

Comment by MAHIMA SHREE on August 5, 2013 at 10:23pm

आदरणीय जवाहर सर ..नमस्कार .बहुत दिनों बाद आये  ..

जी आपसे पुर्णतः सहमत हूँ .. सादर, स्नेह बनाये  रखे /

Comment by MAHIMA SHREE on August 5, 2013 at 10:14pm

आदरणीय शरदेन्दु सर ..

 

रचनाकर्म ने  आपके मर्म को छुआ ..लिखना सफल रहा ..ह्रदय से निकले आपके शब्द मेरे लिए आशीर्वाद है .. स्नेह बनाए रखे / सादर

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 5, 2013 at 9:53pm

अलग तरह की कविता है, एक व्यथा है, एक संकेत, एक सच और एक दुःख.....
इस रचना पर बधाइयाँ महिमा जी !!

Comment by विजय मिश्र on August 5, 2013 at 6:12pm
ईश्वर करें कि आप के इन प्रतारणा के शब्द उन पतीतों और कायरों पर प्रभावी हो ,प्रछन्न
शैली में जिन्हें आपने इंगित किया है .बहुत प्रभावी सम्प्रेषण और घृणा तथा उदवेलना का सही सामन्जस्य .साधुवाद महिमा श्रीजी .
Comment by बसंत नेमा on August 5, 2013 at 3:05pm

भूल गयी

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ना ही  देखती है

देश धर्म औ जात

बस सूंघती है

मादा गंध

बहुत सुन्दर आ0 महिमा जी हार्दिक बधाई ....

Comment by aman kumar on August 5, 2013 at 2:34pm

नारी उत्थान का मूल नारी ही है , एक दिन नारी जाग्रत होंगी और क्रांति होंगी .....

आपकी रचना भी सहायक है 

आभार !

Comment by Meena Pathak on August 5, 2013 at 1:19pm

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ना ही  देखती है

देश धर्म औ जात

बस सूंघती है

मादा गंध................................बहुत सही आ. महिमा जी हार्दिक बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

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