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महिमा पैसो की

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पर पैसो के मैने तो देखे नही ।

फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

पकडते है दोनो हाथो से सभी ।

पर पकड मे किसी के वो आता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

पूजता है मन्दिर मज्जिद मे यही

ये खुदा से बडा तो होता नही ।

पर खुदा से कम भी वो होता नही ।।......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

अपनो को दुश्मन बनाता यही ।

दुश्मन को अपना बनाता यही ॥

पर किसी का सगा भी वो होता नही ॥ ........ फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

खनक पे इसकी नचते सभी ।

देख कर इसको बिकते सभी ।

पर खरीददार सम इसके होता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

दूर हो तो भी चिंता बढाता यही ।

नये नये सपने सुहाने दिखाता यही ।

पर पास जिसके है वो भी सोता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

हकिकत यही है फसाना यही ।

जिन्दगी का हर तराना यही ।

पर कभी सुर मे ये होता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

लिये हाथ खाली आये सभी ।

पाने को इसको बौराये सभी ।

पर भरे हाथ जग से कोई जाता नही .... ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥

"मौलिक व अप्रकाशित"

31/07/13 

Views: 358

Comment

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Comment by बसंत नेमा on August 1, 2013 at 12:51pm

आ0 बिजय जी आज की  यही हकिकत है .....आप ने रचना को समय दिया ..तहेदिल से शुक्रिआ ..धन्यवाद ....

Comment by विजय मिश्र on August 1, 2013 at 10:33am
एक पुराना गीत है -- ठन ठनाठन ठन पर सारी दुनिया डोले रे ..... ---
"हकिकत यही है फसाना यही ।
जिन्दगी का हर तराना यही ।
पर कभी सुर मे ये होता नही ॥" -- मगर ताज्जुब है कि ये बेसुरा राग ही लोगोंको अतिकर्णप्रिय है . बधाई बसंतजी .

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