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फिर कोई आग बुन

क्यों बुझा- बुझा सा है,फिर कोई आग बुन

छेड़ कर सुरों के तार ,फिर कोई राग चुन ।

 

गहन अँधेरी रात में.भोर कीआवाज़  सुन

नींद से जाग जरा,फिर कोई ख्वाब बुन ।

 

मन की हार, हार है,हार में भी जीत ढ़ूँढ़

हौंसला बुलंद कर ,फिर कोई आकाश चुन ।

 

वक्त रुकता नहीं कभी,वक्त की पुकार सुन

भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन ।

********

महेश्वरी कनेरी /मौलिक व अप्रकाशित रचना

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Comment by Maheshwari Kaneri on December 16, 2013 at 10:05pm

सभी मित्र बंधुओ का आभार..

Comment by D P Mathur on August 3, 2013 at 10:24am

मन की हार, हार है,हार में भी जीत ढ़ूँढ़

हौंसला बुलंद कर ,फिर कोई आकाश चुन ।

आदरणीया सुन्दर पंक्तियों की प्रस्तुति के लिए बधाई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 31, 2013 at 10:11am

आदरणीय महेश्वरी कनेरी जी,

ज़िंदगी की राह में चलने , आगे बढने के सकारात्मक चिंतन को शब्द देती अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2013 at 9:07pm

वक्त रुका नहीं कभी,समय की पुकार सुन

भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन ।..............आदरणीया महेश्वरी जी , खूब सूरत पंक्ति ....हार्दिक बधाई 

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 1:18am

सुन्दर सीख देती हुई अच्छी रचना है

Comment by Lata tejeswar on July 26, 2013 at 1:02pm

गहन अँधेरी रात में.भोर का आभास सुन

नींद से जाग जरा,फिर कोई ख्वाब बुन ।

बहुत सुन्दर

Comment by वेदिका on July 26, 2013 at 12:35pm

बहुत बढ़िया, सकारात्मकता भरी रचना पर बहुत बधाई!! 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 25, 2013 at 6:19pm

वक्त रुका नहीं कभी,समय की पुकार सुन

भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन । ---वाह ! सुन्दर सन्देश तेती प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीया महेश्वरी जी 

Comment by annapurna bajpai on July 25, 2013 at 5:34pm

adarniya apko hardik badhai is anupam rachna ke liye .

Comment by Shyam Narain Verma on July 25, 2013 at 3:11pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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