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द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित थे। कुत्ते को बिना कोई नुकसान पहुँचाये उसका मुँह सात बाणों से भरकर बंद कर दिया था एकलव्य ने। ये विद्या तो द्रोणाचार्य ने कभी किसी को नहीं सिखाई। एकलव्य ने उनकी मूर्ति को गुरु बनाकर स्वाध्याय से ही धनुर्विद्या के वो रहस्य भी जान लिये थे जिनको द्रोणाचार्य अपने शिष्यों से छुपाकर रखते थे।

 

द्रोणाचार्य को रात भर नींद नहीं आई। उन्हें यही डर सताता रहा कि एकलव्य ने अगर स्वाध्याय से सीखी गई धनुर्विद्या का ज्ञान दूसरों को भी देना शुरू कर दिया तो द्रोणाचार्य के शिष्यों को, जिन्हें एक दिन द्रोणाचार्य की कीर्ति पताका सारे विश्व में फहरानी है, कौन पूछेगा? तिसपर यदि सबको इस बात का यकीन हो गया कि धनुर्विद्या स्वाध्याय से भी सीखी जा सकती है तो उनको और उनकी आने वाली पीढ़ियों को भिक्षा पर गुजारा करना पड़ेगा। सोच विचारकर दूसरे दिन द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में एकलव्य से उसके दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया।

 

परिणाम?

द्रोणाचार्य का सबसे प्यारा शिष्य और दुनिया का सबसे महान धनुर्धर अर्जुन समय के साथ खुद को बदल नहीं सका और एक दिन पंजाब के साधारण डाकुओं ने अपनी लाठियों से ही उसको बुरी तरह पराजित कर दिया। गुरु द्वारा दिये गये ज्ञान को ही सम्पूर्ण मानकर धनुर्विद्या सीखने वालों ने खुद कभी कुछ और जानने की कोशिश नहीं की। स्वाध्याय के अभाव में धनुर्विद्या में समय के साथ सुधार आने की जगह इसके रहस्य वक्त के साथ लुप्त होते चले गये और एक दिन धनुर्विद्या मर गई। 

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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

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Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 8:16pm

jo ham poranik katha me padh chuke hai dekh chuke hai wahi pura aapne laghu katha ke naame se post kar diyaa hai. Aapko purn tah samman dete huve guzarish hogi ke ye yaha se hata de kyuki ye rachnaa maulik aur aaprakashit nahi hai. Ye ek bahut hi famous kahani hai jiske vishay me hindustaan kaa bachcha bachcha vakif hai.

aur iska ulekh pahle kahani eklavya ki me kaafi vistaar se ho chuka hai.

Saadar


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2013 at 10:34am

किन्तु  ,आज का युग  बदल गया है केवल एक विद्या का ज्ञान रखने वाला कैसे इस जीवन में अपने को सुरक्षित रखेगा पहले धनुष थे आज मिसाइले हैं खतरा एक दिशा से ही नहीं चारों  दिशाओं से हैं,मैं गुरु द्रोणाचार्य की इस गुरुदक्षिणा से कभी सहमत नहीं हुई,उस वक़्त कैसी भी परिस्थिति आई हो किन्तु निःसंदेह मानवता के खिलाफ तो था ही ये। हार्दिक बधाई इस लघु कथा के लिए     

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