For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो चिरागों की लौ में पिघलता है ….

जो चिरागों की लौ में पिघलता है
वो हसरतों को रौ में बदलता है .

तेरे वजूद पे भरोसा है जिसको
आस्माँ से गिर कर भी सँभलता है.

ख्व़ाब जो नींदों के पार रहता है
वो जागती आँख में मचलता है .

चाँद है ,तारे हैं, तन्हाइयाँ भी हैं
ये दिल किसे ढूँढने निकलता है.

हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा
हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .

हासिल ए हयात अब भी बाकी है
सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है

.

-ललित मोहन पन्त
02.21 सुबह
13.07.2013

"मौलिक व अप्रकाशित "

Views: 541

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 2:06pm

भाई ललित मोहन पन्त जी,  ग़ज़ल पर आपका प्रयास अच्छा लगा.

आपने इस मंच पर रचना पोस्ट करने से सम्बन्धित नियम आवश्य देख लिए होंगे. आप अपनी ग़ज़लआदि प्रविष्टियों के साथ उनकी बह्र का विन्यास या नहीं तो उनके मिसरों का वज़्न अवश्य दिया करें. इससे आपको ही लाभ होगा.

आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल में अन्य ऐब भी हैं. लेकिन क़ाफ़िया और रद्दीफ़ बेहतर निभाया गया है.

शुभेच्छाएँ

Comment by विजय मिश्र on July 15, 2013 at 4:50pm
"तेरे वजूद पे भरोसा है जिसको
आस्माँ से गिर कर भी सँभलता है."-- बहुत प्रभावित किया . आभार
Comment by dr lalit mohan pant on July 15, 2013 at 1:57am

arun kumar nigamji  NeerajMishra ji Shyam Narain Verma ji  आपकी हौसला अफजाई का शुक्रिया …  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:14pm

आदरणीय ललित मोहन पन्त जी, शानदार गज़ल के लिये बधाइयाँ............

Comment by Neeraj Nishchal on July 14, 2013 at 8:15pm

हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा,
हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .|

हासिल ए हयात अब भी बाकी है ,
सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है |

kya bolun aapki ye lines kisi chamatkaar se kam nhi lagti

Comment by Shyam Narain Verma on July 13, 2013 at 6:03pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service